शहर के कुम्हारवाड़ा में रहने वाले मोहम्मद उमर उर्फ बुन्दु चाचा के घर में यह परम्परा आज चौथी पीढ़ी से निरन्तर चली आ रही है। दरअसल मोहम्मद उमर उर्फ के पिता मोहम्मद रमजान बैकर्स के घर में कोई औलाद पैदा तो होती थी लेकिन एक साल से अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाती थी। इसी पीढ़ा से उनका पूरा परिवार अत्यंत व्यथित था।
सन् 1939 में मोहम्मद रमजान बैकर्स ने मातमी पर्व के समय में न केवल भूख्ो प्यासे हुए ताजिएं बनाएं। अपितु अपने गुनाहों के लिए निरन्तर आंसू बहाते हुए मन्नत भी मांगने लगें की अब यदि कोई औलाद उनके घर में हो,तो वह खुदा परवरदिगार की ही देन हो साथ वह जीवित भी। कहते है कि सच्चे दिल से मांगी गयी हर कामना या फिर दुआ कबूल होती है,बस असल फर्क इसमें होता है कि उसे मांगने वाला अपने नित्य कर्म व खुदा की इबादत से कितनी ईमानदारी से जुड़ा हुआ। साथ ही कुरान की आयतों में दी जाने वाली शिक्षा का वह कितना पालन करता है।
इसी कड़ी में मोहम्मद रमजान बैकर्स की दुआ कबूल भी हुई और उनके घर में उनकी तीसरी प‘ि चांद बीबी के कोख से मोहम्मद उमर का जन्म हुआ। जब मोहम्मद उमर ने एक साल के हो गए। तो अपनी मन्नत के पूरा होने पर उन्होंने केक का ताजिया बनाकर मातमी पर्व मौहर्रम के जुलुस में निकाला।
इसके बाद में लगातार मोहम्मद रमजान बैकर्स की चौथी पीढ़ी इस परम्परा को यथावत रखते हुए आज भी आने वाले मातमी पर्व मौहर्रम पर केक का ताजिया बनाती है।
गौरतलब है कि मौहर्रम के लिए केक का ताजिया बनाने के लिए मोहम्मद के परिवार के सभी सदस्य एक पूर्व से ही इसकी तैयारियां शुरू करते है। इसके लिए घर के मुखिया जो कि ब उम्रदराज हो चले है। लेकिन अभी वे दोनो बेटे मोहम्मद जफर व मोहम्मद शरीफ व अपने बेटों की बहुओं व पोते पौतियों के साथ में पूरा परिवार इस केक के ताजिए को बनाने के लिए अपना सहयोग प्रदान करता है।
माउण्ट आबू में जब मौहर्रम का जुलुस निकाला जाता है,तब यह केक का ताजियां सभी के लिए आकर्षण का केन्द्र होता है। और बच्चे तो इसके आस पास ही कौतुहलवश मंड़राते रहते है।
News Courtesy : Kishan Vaswani
Title: Tajiya Cake by Mohammad Ramjan Bakers, Mount Abu
Edited by: Sanjay