सरदार जी बारह बज गये |
दोस्तों ! कुछ नादान लोग सिक्ख भाइयों को अपनी और से शायद व्यंग करते हुए कहते हैं, कि सरदारजी बारह बज गए। वे शायद नहीं जानते कि बारह बजे क्या होता था | शायद ‘मेरे सभी सिक्ख भाई भी पूरी जानकारी नहीं ‘ रखते हैं। उन सभी लोगों के लिए वास्तविक जानकारी प्रस्तुत है जो इसका मतलब नहीं जानते हैं। इतिहास गवाह है कि “सिक्खों ने असहाय और कमजोरों की मदद के लिए कभी भी अपनी जान की परवाह नहीं की। सन 1737 से 1767 के बीच भारत पर नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली जेसे लुटेरों के अनेकों हमले हुए |
मारकाट के बाद वे लोग सोना.चांदी और कीमती सामान के साथ –.साथ सुन्दर लड़कियों व स्त्रियों को भी लूटकर साथ ले जाते और ग़जनी के बाज़ारों में टके-टके में बेचकर उनकी इज्जत नीलाम करते थे। ‘भारत भर में इन हिन्दू बहन .बेटियों की चीखो.पुकार सुननेवाला कोई न’ था। स्वयं परिवार के लोग भी अपनी जान बचाते भागते फिरते थे। लूटपाट के माल और स्त्रियों के साथ इन लुटेरों को पंजाब से होकर गुजरना पड़ता था। यहाँ पर सिक्खों ने उन लुटेरों से स्त्रियों को बचाने की ठानी और संख्या में कम होने के कारण छोटे छोटे दल बना कर अर्द्ध-रात्रि के ‘बारह बजे’ हमले की व्यूह रचना बनाई। अपने दल को हमले हेतु तैयार व चौकन्ना करने अपनी मुहीम को पूरी कामयाबी से अंजाम देने के लिए सिक्खों ने एक सांकेतिक वाक्य बनाया था ‘बारह बजे ‘ गए।
इस तरह अर्द्ध -रात्रि को नींद में गाफिल असावधान लुटेरों के कब्जे से अधिक से अधिक स्त्रियों को छुड़ाकर वे स-सम्मान उनके घर पहुँचा देते थे।” दुर्भाग्यवश इस वाक्य के सही महत्त्व का ज्ञान लोगों को नहीं है की किस तरह से सिक्खों ने हिन्दू.बहन, बहु.बेटियों की इज्ज़त बचाई जब दुर्बलता व लाचारी घर कर गई थी”। यह वाक्य उस समय मुस्लिम लुटेरों के लिए भय का पर्याय और हिन्दुओं के वरदान के समान आश्वासन का प्रतीक बन गया था कि, अब सिक्ख उनकी बहन-बेटियों को बचा लेंगे।
सिक्खों के लिए यह वाक्य आज भी वीरता एवं गर्व का प्रतीक है” । यदि कोई व्यक्ति इस वाक्य का प्रयोग करता है तो इस के दो ही अर्थ हो सकते हैं कि. या तो वह इतिहास समझकर वीर सिक्खों का आभार व्यक्त कर रहा है । या उसकी बहन-बेटी को आज फिर खतरा है जिसके लिए वह सिक्ख से मदद चाहता है।
दोस्तों ! सिक्खों की बहादुरी की ऐसी अनेकों दास्तानें फ़्रांस के स्कूली बच्चों को पढ़ाई जाती हैं। आप चाहें तो ‘यूनेस्को’ (UNESCO) द्वारा छापी गई किताब “STORIES OF BRAVERY” में यह सभी तथ्य पढ़कर तसल्ली कर सकते हैं।
मित्रों ! मैंने एक ऐतिहासिक सच्चाई पूरी ईमानदारी से आपके समक्ष रखने का प्रयास किया है। आप इसका कैसा मूल्यांकन करते हैं यह आप पर निर्भर करता है।
“हमें कोई फर्क नहीं पढता हम कल भी खुल्ले शेर थे, आज भी हैं, और हमेशा खुल्ले शेर रहेंगे” |
“वाहे गुरूजी का खालसा, वाहे गुरूजी की फतेह |