भारतीय समाज का प्रमुख त्यौहार होली-
जो लिये हुये विरासत में मिली प्रीत की बोली ऐसी है यह होली-
कृष्ण-राधे-गोपी सब खेले हाली रे,
अबीर,गुलाल ले आओं ,खेले होली रे,
अब पनघट कहाँ, बस प्यासे है सब पानी को रे,
छोड़ो पानी से, अब अबीर गुलाल संग खेलो होली रे।
नफरतों के जल जायें सब अंबार होली में,
गिर जाये मतभेद की हर दीवार होली में।
बिछुड़ गये जो बरसो से प्राण से अधिक प्यारे,
गले मिलने आ जाएं वे इस बंार होली में।
आदि काल से ही भारतीय संस्कृति व समाज में त्यौहारों का महत्व रहा है। होली का त्यौहार भी भारतीय संस्कृति के धार्मिक अंगो में एक महत्वपूर्ण अंग रहा है। ‘होली‘ त्यौहार की अगर बात की जाये तो ये त्यौहार व्यक्ति के जीवन काल में भारतीय संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन काफी मात्रा में देखनें को मिलता है।:होली‘ राष्ट्र में एकता में अनेकता को लिये,व्यक्ति के समरता विविध धर्मो के आधार पर होली त्यौहार मनाया जाता है। भारत में त्यौहारो का महत्व केवल जाति व किसी धर्मो से लेकर नहीं है ,बल्कि समभाव से है।
होलिकोत्सव के लिए कई दिन पहले से बच्चे लकड़ीए कंडे एकत्रित करते हैं। एक माह पूर्व होली का डांडा गाड़ा जाता है। इस त्योहार का संबंध खेती से भी है। इस समय तक गेहूं व चने की फसल अधपकी तैयार रहती है।
किसान इसे पहले अग्नि देवता को समर्पित कर फिर प्रसादस्वरूप स्वयं ग्रहण करता है। नई फसल आने की खुशी में किसान ढोलकए डफ और छैने बजाकरए नाच.गाकर समां बांध देते हैं।
फाल्गुनी पूर्णिमा की रात्रि में होलिका दहन होता है। बच्चे.बूढ़े सभी प्रसन्न हो अगले दिन सुबह से ही रंग.गुलाल आपस में लगाने जाते हैं एवं मिठाइयां खाई.खिलाई जाती हैं। दोपहर पश्चात खुलकर रंग खेला जाता है। बाद में स्नान कर नए वस्त्र पहने जाते हैं।
इन दिनों इस त्योहार का महत्व कम होता जा रहा है। सभ्य लोग इस दिन अपने घरों में बैठे रहते हैंए क्योंकि कुछ लोग शराब पीते हैंए गालियां देते हैं और फूहड़ हरकतें करते हैं।
रंग.गुलाल की जगह गंदगीए कीचड़ फेंकते हैं। अतरू आवश्यक है कि हम इस त्योहार की गरिमा को बनाए रखें। यह त्योहार आनंदवर्धक है इसलिए इसे बड़ी सादगी से मनाना चाहिए।