15/03/2015 माउंट आबू, गणगौर, माउंट आबू में गणगौर की धूम, माउंट आबू की नवविवाहित महिलाए हर्सोलास से इस पर्व को मन रही है, इस पर्व के अंतिम दिनों में जब महिलाए बाज़ार से निकलती है तो ज्यादातर दूकानदार छुपने की कोशिश करते है कारण यह की बाज़ार से निकलते वक़्त महिलाए दुकानदारो एवं ग्राहकों को ना ना प्रकार के नामो से पुकार कर कर उनकी ‘हो’ करती है, जो की काफी मनोरंजक होता है |
होली के दूसरे दिन से जो नवविवाहिताएं प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं, वे चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। यह व्रत विवाहिता लड़कियों के लिए पति का अनुराग उत्पन्न कराने वाला और कुमारियों को उत्तम पति देने वाला है। इससे सुहागिनों का सुहाग अखंड रहता है। राजस्थान में यह व्रत सुहागिन महिलाएं सदियों से मनाती आ रही है। यह उत्सव लतांगी, विनिता, शिवानी, सारिका, हीना, किरण, प्रियंका सोनी और उर्वशी के नेतृत्व में मनाया जा रहा है। आज के 5 जगह गणगौर के बन्दोले लिये गये और मा गणगौर की दिन भर पूजा अर्चना की गई।
गणगौर का पर्व राजस्थान में धूमधाम से मनाया जा रहा है। माउंटआबू में भी धूमधाम से गणगौर की पूजा होती है। इस पर्व में शादीशुदा महिलाएं 16 दिन तक ससुराल से पीहर आ जाती है। महिलाएं सुहाग की लंबी उम्र के लिए गणगौर माता को पूजती है। लड़की की शादी होने पर पहली बार गणगौर की पूजा जरूरी होती है। कुंवारी लड़कियां भी अच्छे वर की चाहत में गणगौर पूजती है। इस दौरान घरों के अंदर बंदोरे होते हैं जहां- जहां महिलाएं श्रृंगार करती है। इस दिन माउंटआबू के नक्की झील में चने का प्रसाद बांटी जाती है जिसे घोघरी कहा जाता है। माउंटआबू में यह आयोजन 22 तक चलेगा । 22 तारीख को सबसे बड़े गणगौर की पूजा होगी।
नवरात्र के तीसरे दिन यानि कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को गणगौर माता (माँ पार्वती) की पूजा की जाती है। पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता व भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशर जी की पूजा की जाती है। प्राचीन समय में पार्वती ने शंकर भगवान को पति (वर) रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की। शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी की शिव जी से शादी हो गयी। तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है। सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए यह पूजा करती है। गणगौर पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ की जाती है। सोलह दिन तक सुबह जल्दी उठ कर बगीचे में जाती हैं, दूब व फूल चुन कर लाती है। दूब लेकर घर आती है उस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती है। थाली में दही पानी सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है। नक्की झील में कलश लेकर महिलाएं जाती है और जहां जहां गणगौर माता होती है वहां उनकी पूजा होती है |
News Courtesy: Anil Areean, Mount Abu
Edited By: Er. Sanjay