सम्पूर्ण विश्व में 5 जून को “विश्व पर्यावरण दिवस” के रूप में मनाया
जाता है | लोग कहते हैं कि इतिहास अपने को दोहराता है। कुछ लोगों का
मानना है कि इतिहास से सबक लेना चाहिए। इन दोनों वक्तव्यों को ध्यान में
रख पर्यावरण दिवस पर धरती के इतिहास के पुराने पन्नों को पर्यावरण की नजर
देखना-परखना या पलटना ठीक लगता है। इतिहास के पहले पाठ का सम्बन्ध
डायनासोर के विलुप्त होने से है।
डायनासौर उनके विलुप्त होने का सबसे अधिक मान्य कारण बताता है कि उनकी
सामुहिक मौत आसमान से आई। लगभग साढ़े छह करोड़ साल पहले धरती से एक विशाल
धूमकेतु या छुद्र ग्रह टकराया। उसके धरती से टकराने के कारण वायुमण्डल की
हवा में इतनी अधिक धूल और मिट्टी घुल गई कि धरती पर अन्धकार छा गया। सूरज
की रोशनी के अभाव में वृक्ष अपना भोजन नहीं बना सके और अकाल मृत्यु को
प्राप्त हुए। भूख के कारण उन पर आश्रित शाकाहार डायनासोर और अन्य
जीवजन्तु भी मारे गए। संक्षेप में, सूर्य की रोशनी का अभाव तथा वातावरण
में धूल और मिट्टी की अधिकता ने धरती पर महाविनाश की इबारत लिख दी। यह
पर्यावरण प्रदूषण का लगभग साढ़े छह करोड़ साल पुराना किस्सा है।
आधुनिक युग में वायु प्रदूषण, जल का प्रदूषण, मिट्टी का प्रदूषण, तापीय
प्रदूषण, विकरणीय प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, समुद्रीय प्रदूषण,
रेडियोधर्मी प्रदूषण, नगरीय प्रदूषण, प्रदूषित नदियाँ और जलवायु बदलाव
तथा ग्लोबल वार्मिंग के खतरे लगातार दस्तक दे रहे हैं। ऐसी हालत में
इतिहास की चेतावनी ही पर्यावरण दिवस का सन्देश लगती है।
पिछले कुछ सालों में पर्यावरणीय चेतना बढ़ी है। विकल्पों पर गम्भीर
चिन्तन हुआ है तथा कहा जाने लगा है कि पर्यावरण को बिना हानि पहुँचाए या
न्यूनतम हानि पहुँचाए टिकाऊ विकास सम्भव है। यही बात प्राकृतिक संसाधनों
के सन्दर्भ में कही जाने लगी है।
पर्यावरण को हानि पहुँचाने में औद्योगीकरण तथा जीवनशैली को जिम्मेदार
माना जाता है। यह पूरी तरह सच नहीं है। हकीक़त में समाज तथा व्यवस्था की
अनदेखी और पर्यावरण के प्रति असम्मान की भावना ने ही संसाधनों तथा
पर्यावरण को सर्वाधिक हानि पहुँचाई है। उसके पीछे पर्यावरण लागत तथा
सामाजिक पक्ष की चेतना के अभाव की भी भूमिका है। इन पक्षों को ध्यान में
रख किया विकास ही अन्ततोगत्वा विश्व पर्यावरण दिवस का अमृत होगा।