प्रेम की यह गाथा पौराणिक है और बालम रसिया की जिसकी गूंज आज भी यहां की वादियों में सुनाई देती है। पौराणिक मान्यताओँ के मुताबिक भगवान विष्णु ने बालमरसिया के रूप में अवतार लिय़ा था। बालमरसिया ने ही माउंटआबू और दुनिया भर में विश्व प्रसिद्ध दिलवाड़ा जैन मंदिर की रुपरेखा बनाई थी। माउंटआबू बालम रसिया यानी भगवान विष्णु के आजीवन प्रेम करने के बावजूद कुंवारे रह जाने का गवाह है।
राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन माउंटआबू जहां स्थित दिलवाड़ा जैन मंदिर देश के सात अजूबों में शुमार होता है और जिसकी तुलना ताजमहल से भी की जाती है दिलवाड़ जैन मंदिर कई ऐतिहासिक और पौराणिक परंपराओं का गवाह है। दिलवाड़ा की मूर्तियां और कलाकारी उस शिल्पी के कल्पनाओं का नमूना है जब भगवान विष्णु ने बालम रसिया के रूप में यहां अवतार लिया था। आज भी यहां प्रेम की एक अद्भुत गाथा एक प्रतीक के रूप में गवाह बनी हुई है जब भगवान विष्णु आजीवन कुंवारे रह गए थे।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान विष्णु ने बालमरसिया के रूप में अवतार लिय़ा। पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान विष्णु के नये अवतार बालमरसिया ने इस मंदिर की रुपरेखा बनाई थी। दिलवाड़ा जैन मंदिर भगवान विष्णु के बालमरसिया रुप के अवतार की खूबसूरती का इकलौता गवाह है। कहते हैं भगवान विष्णु आज भी यहां कई रुपों में विचरण करते हैं।
भगवान विष्णु का एक अवतार उनका एक मनमोहक रुप बालमरसिया ऐसी मान्यता है कि कहा जाता है कि भगवान विष्णु का ये अवतार गुजरात के पाटन में एक साधारण परिवार के घर में हुआ। विष्णु भगवान के जन्म के बाद ही पाटन के महाराजा उनके मंत्री वस्तुपाल और तेजपाल ने माउंटआबू में दिलवाड़ा मंदिर के निमार्ण की इच्छा जाहिर की। ये बात पूरे राज्य में आग की तरह फैल गई। भगवान विष्णु के नये अवतार बालमरसिया ने भी महाराज के इस बात को सुना। और वो वस्तुपाल और तेजपाल के पास इस मंदिर की रुपरेखा लेकर पहुंच गए।
लेकिन बालमरसिया को अभी कड़ी परीक्षा से गुजरना था। वस्तुपाल ने बालमरसिया से कहा कि अगर ऐसा ही मंदिर तैयार हो गया तब वो अपनी पुत्री की शादी बालमरिसिया से कर देंगे। भगवान विष्णु के अवतार बालमरसिया ने इस प्रस्ताव को हाथों हाथ लिया। मंदिर को ऐसा बनाया की देखने वालों की आंखें चौधिया गई। पौराणिक कथा के अनुसार बालमरसिया की होने वाली दादीसास ने छल कर दिया और शादी करने के लिए एक और शर्त रख दी। उन्होंने शर्त रखी कि अगर एक रात में सूरज निकलने से पहले अपने नाखूनों से खुदाई कर मैदान को झील में तब्दील कर देंगे।तब वो अपनी पोती का हाथ बालमरसिया के हाथों में देंगी।
जाहिर है बालमरिया भगवान विष्णु के अवातार थे और उनके लिए ये कोई मुश्किल काम नहीं था।उन्होने एक घंटे में ही ऐसा करके दिखा दिया।इस तरह से माउंटआबू में बन गई नक्की झील। नक्की झील माउंट आबू का एक सुंदर पर्यटन स्थल है।
मीठे पानी की यह झील राजस्थान की सबसे ऊँची झील हैं सर्दियों में अक्सर जम जाती है। यह झील बालमरसिया ने नाखूनों से खोदकर बनाई थी इसीलिए इसे नक्की (नख या नाखून) नाम से जाना जाता है। झील से चारों ओर के पहाड़ियों का दृश्य अत्यंत सुंदर दिखता है। फिर भी बालमरसिया की होने वाली दादीसास ने अपनी पोती का विवाह उनसे नहीं किया।दरअसल उसने ये छल किया कि वह मुर्गा बन गई और मुर्गा बनकर उसने बांग दे दिया।ऐसा करते देख भगवान विष्णु कोध्रित हो उठे और उन्होंने अपनी होने वाली दादीसास का वध कर दिया और बाद में ये जगह कुंवारी कन्या के रुप मे मशहूर हो गई।दादीसास मरते-मरते भगवान विष्णु और अपनी पोती को पत्थर के रूप में परिवर्तित होने का अभिशाप दिया। वह खुद भी मर गई और उसके अभिशाप से भगवान विष्णु यानी बालमरसिया का विवाह कुंवारी कन्या से नहीं हो सका और वह दोनों कुंवारे रह गए।
यह स्थान इस बात का गवाह है कि भगवान विष्णु का कुंवारे रह गए और उनका विवाह नहीं हो सका।औरतें यहां आती हैं तो चूडियां चढ़ाती हैं। जबकि इस टीले पर पत्थर मारने की मान्यता है। पौराणिक कथा कहती है कि इसी जगह भगवान विष्णु ने अपनी होने वाली दादीसास का वध करके दफनाया । श्रद्धालु इस टीले पर पत्थर मारते हैं और ये जगह गवाह बनी बालमरसिया के आजीवन अविवाहित रहने की। तब से इस टीले की प्रेम के एक अद्भत प्रतीक के रूप में आज भी याद किया जाता है। यह वैलेंटाइन आज का नहीं सदियों पुराना है लेकिन प्रेम की एक मिठास समाहित किए हुए हैं जब भगवान विष्णु यानी बालम रसिया के चाहने के बावजूद उनकी शादी नहीं हुई और वो आजीवन कुंवारे रह गए।
written by:
Anil Areean