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इस राखी पर भैया , मुझे बस यही तोहफा देना तुम ,
रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बस यही इक वचन देना तुम ,
बेटी हूं मैं , शायद ससुराल से रोज़ न आ पाऊंगी ,
जब भी पीहर आऊंगी , इक मेहमान बनकर आऊंगी ,
पर वादा है, ससुराल में संस्कारों से,
पीहर की शोभा बढाऊंगी ,
तुम तो बेटे हो , इस बात को न भुला देना तुम ,
रखोगे ख्याल माँ -पापा का बस यही वचन देना तुम ,
मुझे नहीं चाहिये सोना-चांदी , न चाहिये हीरे-मोती
मैं इन सब चीजों से कहां सुःख पाऊंगी
देखूंगी जब माँ-पापा को पीहर में खुश
तो ससुराल में चैन से मैं भी जी पाऊंगी
अनमोल हैं ये रिश्ते , इन्हें यूं ही न गंवा देना तुम ,
रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बस यही वचन देना तुम ,
वो कभी तुम पर यां भाभी पर गुस्सा हो जायेंगे ,
कभी चिड़चिड़ाहट में कुछ कह भी जायेंगे ,
न गुस्सा करना , न पलट के कुछ कहना तुम ,
उम्र का तकाजा है, यह भाभी को भी समझा देना तुम ,
इस राखी पर भैया मुझे बस यही तोहफा देना तुम
रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बस यही वचन देना तुम ।
लेखक
– सुरेश व्यास सिखवाल