दो दिनों का राजपाठ और दो दिनों के राजा: पौराणिक खबर


| September 24, 2015 |  

राजे-रजवाड़े का दौर तो खत्म हो गया। न राजा रहे और न ही उनका राजपाठ। लेकिन हां राजे-रजवाड़े का खानदान आज भी ज़रूर मौजूद है। राजस्थान के इकलौते हिल स्टेशन माउंटआबू से 70 किलोमीटर दूर सिरोही में एक सदियों से चली आ रही एक अजीबोगरीब परंपरा आज भी चली आ रही है। जलझुन्नी ग्यारस अर्थात भगवान कृष्ण के जलवों के दिन सिरोही राजघराना अपना राजपाठ दो दिन के लिए रबारी यानि देवासी जाति के लोगों को सौंप देते है।

इस मौके पर सिरोही में लाखों देवासी लोग जुटे हैं। देशभर से लाखों रेबारी देवासी समाज के लोग यहां जुटे हैं और आज यानी 24 सितंबर को इस परंपरा का पहला दिन है। आज से लेकर दो दिन तक राजपाठ रेबारी देवास समाज के पास ही रहेगा। इस मौके पर सिरोही के राजा भी यहां पहुंचे है। 25 सितंबर तक राजपाट देबारी समुदाय के लोगों के पास ही रहेगा।

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ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक मुगल सम्राट अलाउद्दीन खिलजी ने जब सिरोही पर आक्रमण किया था तब देवासी जाती के लोगों ने उन्हें खदेड़कर माउंटआबू से भगाया था और अलाउद्दीन खिलजी सिरोही को जीत पाने में नाकाम रहा था उसी समय से सिरोही के तत्कालनी राजा ने ऐलान किया था कि जलझुन्नी ग्यारस के दिन देवासी जाति को दो दिन के लिए राजपाठ सौंप दिया जाएगा तब से ये परंपरा आज तक चली आ रही है। इस बार भी इस परंपरा के मौके पर यहां रेबारी देवासी समाज में खासा उत्साह है।

लाल पगड़ी और सफेद पोशाक में रेबारी देवासी समाज के लोग जिन्हें परंपरा के मुताबिक सिरोही के राजा ने दो दिनों का राजपाठ सौंप दिया है। लाखों की यह भीड़ देवासी समाज के लोगों की है जो इस अदभुत परंपरा को निभाने के लिए देशभर से यहां पहुंचे हैं।
महिला और पुरुष सभी एक ही वेशभूषा और पोशाक में दिख रहे हैं। यह परंपरा निभाई जा रही है माउंटआबू के करीब सिरोही राजघराने के राजमहल में। यहां इनका अब कोई शासन तो नहीं लेकिन सदियों चली आ रही परंपरा के मुताबिक दो दिन के लिए राजपाठ देवासी जाति के लोगों को सौंप जाता है। एक साल में यह सिर्फ एक बार ही होता है कि देबासी समुदाय के लोग एक ही पोशाक में इतनी बड़ी संख्या में इकट्ठा होता है।

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ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक पूरे सिरोही की देवासी जाति के लोगों ने रक्षा की थी। सिरोही के अलाउद्दीन से बचाने के लिए तत्कालीन राजा ने इनाम दिया था । ये इनाम माउंटआबू को अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण से बचाने का था।
तभी से उन्हें जलझुन्नी ग्यारह के दिन जो भगवान कृष्ण के जलवों का दिन कहा जाता है,राजपाठ सौंप दिया जाता है । सदियों से चली आ रही ये पुरानी परंपरा आज भी चली आ रही है। इस दिन सिरोही राजघराने से जुड़े सभी लोग महल छोडकर कही और रहते है ।

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दो दिन बीत जाने के बाद ही वो महल में आते है ।इस दौरान पूरा राजपाठ देवासी जाती के कब्जे में रहता है और संचालन वही करते हैं।
दो दिनों के इस राजपाठ में बाकायदा सिरोही राजघराना के महाराज ने देवासी जाति को अपना राजपाठ सौंप दिया ।
उन्हें राजशाही पगड़ी सौंपी गई । राजमहल में उनका तिलक किया गया ।सिरोही के कलेक्टर दूसरे दिन पूरे सिरोही में छुट्टी का ऐलान करते हैं ।इस दिन माउंटआबू सहित पूरा सिरोही बंद रहता है। दो दिनों तक राजपाठ चलाने के बाद देवासी लोग राजघराना सिरोही के वंशजों को सौंप देते है ।

इस दिन सिरोही के राजमहल से शानदार शोभायात्रा निकाली गई । ये शोभायात्रा सिरोही के तालाब तक पहुंचती है। उसके बाद देवासी लोग कई रस्मों को अदा करते हैं। रस्मों को निभाने के बाद शोभायात्रा राजमहल की ओर रवाना हो जाती है। इस दौरान पूरे समुदाय के लोग नाच गा और खुशी मना रहे हैं। ये खुशी अलाउद्दीन खिलजी पर विजय और राजपाठ मिलने की खुशी के लिए होता है। जलझुन्नी का उत्सव माउंटआबू सहित पूरे सिरोही जिले के बड़ा उत्सव होता है। इसी उत्सव के ग्यारह यानि ग्यारहवें दिन से लेकर अनंत चतुर्थी तक उत्सव का माहौल रहता है । देवासी जाति के लोगों में इस दिन खासा उत्साह देखा जा रहा है।

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Story by: Anil Areean, PC: Ganpat Singh

 

 

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