माँ शक्ति पीठ स्थापित है। और चैत्र व शारदीय नवरात्र में भक्तजन अपने कामनाओं को लकर मां के दरबार में धोक लगाते है।
माउण्ट आबू में अधर देवी के नाम से जो शक्ति पीठ स्थापित है। यहां पर माना जाता है। जब शती के 52 टुकड़ें तांड़व नृत्य करते हुए थे। उसमें मां के होठ (संस्कृत में होठ को अधर कहते है।) यहां पर ठीक इसी स्थान पर गिरें थे।
विशाल गुफा में प्राकृतिक रूप में यहां पर मां की प्राकृतिक मूर्ति स्थापित है।
जिसकी तस्वीर लेने के लिए आज तक किसी को अनुमति नहीं मिली है। और दर्शनीर्थी व श्रद्धालु भक्त जन जब इस मंदिर में सैकड़ों मीटर की यात्रा के पश्चात् 350 सीढिय़ों को चढक़र के मां के दर्शन के लिए आते है,तो उन्हें अपने मोबाइल,कैमरा व अन्य सभी सामान पर्स,चश्मा आदि मंदिर के बाहर ही जमा कराना पड़ता है। और बाद में टोकन लेकर उन्हें मंदिर में दर्शन के लिए प्रवेश मिलता है।
वेद व्यास जी के द्वारा रचित ग्रंथ स्कन्द महापुराण के प्रभास खंड़ में है, इस अति प्राचीण मंदिर का वर्णन :-
माउण्ट आबू में यो तो अनैक ऋषि मुनियों ने सदियों से शक्ति साधना की है। लेकिन यहां पर ख्यातनाम ऋषि वेद व्यास भी आए थे। और उन्होंने यहां पर कई ग्रंथों को बैठकर लिखा है। जो सर्वदा उपलब्ध ग्रंथ है,और प्रामाणिक भी। उसमें से एक है स्कन्द महापुराण। इसी स्कन्द महापुराण के अर्बुद खंड़,और इसी अर्बुद खंड़ के सोलहवें अध्याय में इस प्राचीणतम मंदिर को 5500 वर्ष से भी अधिक पुराना बताया गया है। साथ ही यहां पर मां के होठ गिरने का वर्णन है। इसलिए मां कात्यायनी के रूप में नवरात्र की चतुर्दशी व छठ को यहां पर मां का विशेष श्रृंगार व दर्शन होते है। सिद्ध साधक पूरें नवरात्र में यहां पर आकर अपनी वाचा जिव्हा की सिद्धि के पूजन व तपस्या भी करते है। अष्टमी की रात्रि में महायज्ञ होता है,जो नवमी के सुबह तक पूर्ण होता है। वर्ष पर्यन्त यहां पर मां गुर्गा सप्तशती का पाठ आचार्य व ब्राह्मणों के द्वारा सुबह व शाम को किया जाता है। तो नवरात्रों में तो पूरें दिन व रात्रि में अखंड़ पाठ निरन्तर होता है।
राजपूत,परमार,आजंणा,जैन समाज के कुछ गौत्रों व चोधरी समाज के लोगों की कुल देवी है,मां अधर देवी
माउण्ट आबू की शक्ति पीठ में विराजित मां अधर देवी जहां पर मां के होठ गिरे थे,उसे प्रदेश के राजपूत,परमार,आजंणा,जैन समाज के कुछ गौत्रों समेत गुजरात के चोधरी समाज के लोगों ने अपनी कुल देवी माना और आज इन्हीं समाजों से सैकड़ों लोग यात्रा संघ के रूप में माउण्ट आबू में मां के दर्शन के लिए आते है। नवरात्र के दौरान तो इस स्थान पर यात्रा संघों का निरन्तर आवागमन बना सा रहता है। और माना जाता है कि यहां पर आने से दुखी लोगों की मां अंतकरण से पुकार सुनकर जल्द ही उनकी मनोकामना पूर्ण कर देती है। इसलिए मुख्यतया यह भी देखा जात रहा है। जल्द ही मनोकामना पूर्ण होने पर सैकड़ों श्रद्धालु एक दो माह के अंतराल में ही दुबारा पुन: मनोकामना पूर्ण होने पर मां के दरबार में उसका आभार व्यक्त करने के लिए आते है। राज्य से दूरस्थ स्थानों के लोग नवरात्र में तो अवश्य ही आते है।
On Navratri, each Goddess of Navadurga is worshipped and puja begins with Shailputri Maa and ends with Siddhidhatri Mata. Dussehra falls on the 10th day and is celebrated with great zeal and enthusiasm. Diwali, the festival of lights, is celebrated 20 days after Dussehra.
Every day of Navratri has significant colors, to be worn by devotees as well as Goddess Durga with their significance:
First Day – Ghatasthapana / Pratipada (13 October, 2015) – YELLOW