पूरे देश में एक ही जगह जहां निभाई जाती है 75 साल से यह पंरपरा, माउन्ट आबू में निकाले गये केक के ताजिये।
माउन्ट आबू के कुम्हारवाडा के निवासी मोहम्मद रमजान ने 1941 में प्रदेश के इकलौते हिल स्टेशन माउन्ट आबू से ईमाम हुसेन की याद में मुस्लिम समुदाय की ओर से मनाया जाने वाला मोर्हरम को एक नया रूप और नई परंपरा दी जिसे आज 75 वर्ष पूर्ण हो चुके है और इस परंपरा का निर्वहन रमजान के बाद उनके पुत्र मोहम्मद उमर बुन्दू भाई निभाते आ रहे है जिनकी उम्र 75 वर्ष हो चुकी है। उनके साथ उनके पुत्र जफर मोहम्मद भी इसी परंपरा से जुड गये है।
यह पंरपरा है जहां पूरे देश में ताजिये निकाले जाते है लेकिन माउन्ट आबू के कुम्हारवाडा से हर वर्ष यह परिवार एक 5 फीट का केक का ताजिया बनाकर माउनट आबू के नक्की झील ईमामबाडा जहां से ताजिये निकाले जाते है वहां पहुचाया जाता है। यह ताजिया केक का होता है जिसमें ड्राय फू्रट, घी, बटर, क्रीम और अण्डों के साथ मिलाकर यह केक तैयार किया जाता है। मोहम्मद उमर और उसके पुत्र जफर ने बताया कि हमारे दादाजी की इस पंरपरा को हम निभा रहे है ।
जफर का कहना है कि मेरे पिता की उम्र 75 वर्ष हो चुकी है इसके साथ अब इस पंरपरा का निर्वहन के लिये मै उनके साथ जुड चुका हॅू और इस बार का पांच फीट का केक से बनाया गया ताजिया यहां आने वाले सेलानियों और स्थानीय निवासियो के लिये भी हर वर्ष की तरह आकृषण का केन्द्र बना है। उन्होने बताया कि पूरे देश में माउन्ट आबू ही ऐसी जगह है जहां केक का ताजिया निकलता है और मोर्हरम के दिन इन ताजियो को अन्य ताजियो के साथ मछली आदि को खाने के लिये नक्की झील में ही विर्सजित किया जाता है। उन्होने बताया कि जो लोग इस पर्व के लिये केक के ताजिये की मन्नत मानते है उनके ताजिये अलग से तैयार किये जाते है। जो इससे छोटे होते है इस बार भी तीन ताजिये मन्नत के बनाये गये है।