आबूरोड रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को अपने श्रम से प्रदान करेगी सेवाएं|
अजमेर डिवीजन में अब आबू रोड रेलवे स्टेशन पर आने पर आपको महिला कुली(मणि) भी अपने श्रम से आपके माल सामान को सुरक्षित स्थान पर रख कर आपकी सुखद यात्रा की कामना करेगी। पहली महिला कुली से अब कार्यरत रहने से महिला यात्रियों को अपने माल सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की सहजता रहेगी ।
समय और परिस्थितियां मनुष्य को सबकुछ सीखा देती है। महिला किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं है । फिर चाए काम कैसा भी क्यों न हो । जीवन के हर कदम पर,हर डगर पर ऐसे बहुतेरे उदाहरण बिखरे पड़े है जहाँ पर महिलाओ ने पुरुष प्रधान क्षेत्रों में आज अपने कार्य को कर अपनी उपस्तिथि का अहसास करवा रही है। बस ठीक ऐसा ही कुछ अब आपको आबू रोड रेलवे स्टेशन पर देखने को मिल जायेंगे। आबू रोड की रहने वाली 35 वर्षीय मणि अब कुली के रुप में नजर आयेगी।
महिला कुली के रूप में कार्य करने के लिए मणि का आबू रोड के रेलवे स्टेशन पर आने की कहानी भी मजबूरी से ही शुरू होती है, जो आम गृहणियो के समकक्ष ही है। जो जीवन में अपने परिवार के पालन पोषण के लिए कुछ भी श्रम-परिश्रम से परहेज न कर आत्मसम्मान से जीवन जीती है। आबू रोड के गांधीनगर निवासी राजेन्द्र कुमार आबू रोड रेलवे स्टेशन पर कुली थे। परन्तु 35 वर्ष की उम्र में उनकी चार वर्ष पहले मौत हो गयी। उनकी पत्नी मणि देवी के एक बेटा तथा दो बेटिया है। पूरी तरह से पति पर निर्भर मणि देवी को खाने के लाले पड़ गये और वे घर में बर्तन साफ सफाई कर पेट पालने लगी परन्तु इतने से मुश्किल से गुजारा हो रहा था।
पिछले चार वर्षों तक दर दर भटकने के बाद जब यह बात नार्थ वेस्टर्न एम्प्लायज यूनियन संघ को पता चली तो उन्होंने मणि देवी को कुली बनाने का फैसला लिया और रेलवे प्रशासन से मिलकर उन्हें कुली का बैज दिला दिया जिससे वे अब आबू रोड रेलवे स्टेशन पर सामान्य कुलियों की तरह कुली का कार्य कर रही है और अपने बच्चों का पालन पोषण कर रही है। उनका कहना है कि जब पुरुष यह कार्य कर सकते है तो महिलायें क्यों नहीं।
वीओः परन्तु जब पूरी घटनाक्रम के बारे में उनसे जानने की कोशिश की गयी तो उनकी आंखे डबडबा गयी। आसुओं के बीच बोली कि इसके अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है। परन्तु उन्हें इस बात से खुशी है कि हमें प्रतिदिन काम मिलेगा और अपने बच्चों को पाल पोसकर बड़ा करुंगी तथा इन्हें योग्य बनाउंगी। इससे से वे प्रतिदिन दो सौ से तीन सौ रुपये कमा लेती है। जिससे वे किसी तरह अपने परिवार को चलायेंगी।
जहाॅं आबू रोड की ही नहीं बल्कि पूरे देश की महिलाओं में हर कार्य के लिए जज्बा और हिम्मत आयेगी वहीं रेलवे प्रशासन भी हर सम्भव मदद करने को तत्पर रहेगा