शिक्षकों के अभाव में शिक्षा व आत्मनिर्भरता की डगर पर माउंट आबू के 35 दृष्टिबाधित व विकलांग छात्र


| December 3, 2015 |   , ,

विश्व विकलांग दिवस 3 दिसम्बर 2015
हमारे देश ने भले ही विकास की नयी रफतार पकड़ ली हो,और विकास की ओर तेजी से अग्रसर हो। लेकिन‌‌ हमारें समाज के मध्य में विकलांग व दृष्टिबाधित शब्द आते ही एक ऐसे वर्ग की याद उभर आती है; जिसने ईश्वर की बनायी इस धरा पर जन्म तो लिया,लेकिन शायद व हमारे जैसे सामान्य मनुष्यों की तरह से जीवन का आनन्द नहीं ले पाता हो।

खैर प्रकृति ने तो इनके साथ में न्याय नहीं किया, लेकिन हमारी राजस्थान की सरकार तो सब कुछ जानकर भी इस छोटी सी समस्या की ओर अनभिज्ञ बनी हुई है। इन दृष्टिबाधित छात्रों को पहले सरकार से ग्रांट के रूप में आर्थिक सहायता मिलती थी,जो वर्ष 2012 से ही बंद हो गयी,उसके बाद में राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग ने समायोजन व सैट अप के नाम पर इस विदृयालय में कार्यरत् एक प्रधानाचार्य समेत छह शिक्षकों को शहर के अन्य सरकारी विृयालयों में समायोजित करके इन दृष्टिबाधित छात्रों को शिक्षा के रूप में मिलने वाली एक मात्र सुविधा भी इनसे छिन ली। अब यह दृष्टिबाधित छात्र इसी विदृयालय में उच्च कक्षा का अध्ययन करने वाले छात्रों के माध्यम से यहां पर आने वाले दृष्टिबाधित व विकलांग छा़त्रों को शिक्षा के साथ में अपने जीवन में आत्मनिर्भर बनने का हुनर सिखाया जाता है।

माउण्ट आबू के नेब फिरोज नौशिर मेरवान अंधजन पुर्नवास केन्द्र में दृष्टिबाधित छात्रों को ब्रेल लिपि में अध्ययन के अलावा कम्प्यूटर चलाना,लिक्विड फिनाइल बनाना, कुर्सी,सोफे को प्लास्टिक की धागों से बुनना,डोरमेट मैकिग,मोमबत्ती बनाना इत्यादि के अलावा दैनिक जीवन में किए जा सकने वाले कार्यों का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। जिससे यह शिक्षा प्राप्त करने के बाद में आत्मनिर्भर बने और किसी पर आश्रित न रहे।

हताशा होती है कि, इस अंधजन पुर्नवास केन्द्र में माउण्ट आबू में गर्मियों के अपने भ्रमण के दौरान जब राज्यपाल,शिक्षा मंत्री,वासुदेव देवनानी,समाज कल्याण मंत्री अरूण चतुर्वेदी, और अन्य अधिकारियों के आने व उनकी घोष्नाओं व किए गए तमान वादों एवं आश्वासन के बाद भी इस अंधजन पुर्नवासमें आशा की कोई किरण नहीं जाग पाई है। समय बितने के साथ में यह दृष्टिबाधित छात्र तो अपने भाग्य विधाता के लिखे लेख से अपने जीवन का निर्वाह करते रहेंगे; लेकिन देश व समाज ने जिन कंधों पर हमारें संविधान के प्रदृत अधिकारों के तहत् कुछ कर सकने की जिम्मेवारी व क्षमता प्रदान की है। वे संभवतया अपने कर्तव्यों के पालन से आज तक भी विमुख ही नजर आ रहे है। यदि इन छात्रों को छोटी छोटी सहायता भी राज्य सरकार से मिल जाएं तो न जाने इन जैसे कितने दृष्टिबाधित व विकलांग लोगों में आशा व उमंग के साथ में कुछ कर देश के विकास में योगदान देने का हौसला प्रस्फुटि्ट हो जाएं।

 

 

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