शराब ठैके बंद करने कि मांग
आबूरोड। कहने मे आता है कि गरीब व आदिवासी इलाको मे शराब का सेवन अधिक होता है, शिक्षा की कमी कहो या कुछ ओर वहां के लोग खाना बंद कर सकते है लेकिन शराब का सेवन नही। अधिकतर आदिवासी कच्ची शराब बनाकर व उसे बेचकर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे है। इसके बावजूद भी आदिवासरीयो ने सभी बातो को झुठलाते हुये अपने क्षेत्रो मे शराब बंदी का फरमारन जासरी कर दिया है, साथ ही अपने क्षेत्रो मे खुले सरकारी देशी व अंग्रेजी शराब के ठेके बंद करने की भी सरकार से मांग कर दी है।
इसी फरमान के लिये शुक्रवार को सियावा गांव मे आदिवासीयो कि एक महा आम सभा आयोजित हुई। इस महा सभा मे आदिवासीयो ने पंच पटेलो सहित, सभी पट्टो के प्रमुखो के साथ महिलाओ ने बडी तादाद मे भाग लेकर शराब बंदी के फेसले को सही ठहराते हुये, सरकार से आदिवासी क्षेत्रो मे शराब के ठेके बंद करने कि मांग कि। सभा को सम्बेाधित करते हुये सियावा सरपंच लक्ष्मी देवी ने कहा कि हमारे लिये सरकार काफी योजनाएं चला रही है लेकिन हमारे द्वारा शराब का सेवन करने के कारण हम उसको नही समझ पा रहे है, हम नशे के कारण अपने पूरे परिवार को मुसीबत मे डाल रहे है,महिलाओं ने दुकान के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। दुकान को बंद करवा दिया। मौके पर पहुंचे प्रधान लालाराम गरासिया के नेतृत्व में पंचायती में समूचे भाखर क्षेत्र में शराब विक्रय को पूरी तरह से बंद करवाने का निर्णय किया गया।
बड़ी संख्या में पहुंची महिलाओं ने शराब की दुकान के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। आक्रोशित महिलाएं शराब विक्रय को बंद करने की मांग पर अड़ गई। सूचना मिलने पर सदर सीआई भंवरलाल चौधरी, छापरी चौकी इंचार्ज हेड कांस्टेबल सुल्तानसिंह मय जाप्ता मौके पर पहुंचे। आक्रोशित महिलाओं व वनवासियों की समझाइश की। इस अवसर पर पूर्व सरपंच दोलाराम गरासिया, उपसरपंच सोमाराम, वार्ड पंच मगदू बाई, पंचायत समिति सदस्य माया बेन राव, अजयसिंह राव, लीलाराम गरासिया, लखमाराम, सोनाराम, मोतीराम, हीमाराम, साहेबाराम, हीराराम, हंसाराम, उत्तम कपिल, पीथराम पटेल, दियालाराम पटेल समेत करीब पंद्रह सौ महिलाएं व वनवासी मौजूद थे। प्रधान लालाराम गरासिया वनवासियों से रुबरु हुए।
इसके बाद शराब की दुकान पर मौजूद व्यक्ति को दुकान बंद कराने के संदर्भ में चर्चा की। इस बारे में पंचायती हुई। इसमें भाखर क्षेत्र में शराब विक्रय पर पूर्ण पाबंदी का संकल्प दोहराया गया। इस अवसर पर बादिया गढ़, पीपरमाल, जाम्बुड़ी, बोसा, पाबा, कुंई, भैसासिंह गांवों के वनवासियों का हुजूम