अपनी ही चुनी हुई राज्य सरकार ( भा ज पा ) के विरुद्ध भा ज पा के पार्षद धरने पर ।
पालिका के 20 में से 18 पार्षद धरने पर ।
माउंट आबू, यक़ीनन अभी राजस्थान की जनता की और से चुनी गई वसुन्धरा राजे की सरकार के अपने कार्यकाल की दूरीआधी अधूरी ही बमुश्किल तय हुई हो । लेकिन उसी सरकार के ही छत्र-छाया में कम करने वाली प्रदेश की सबसे धनी नगर पालिका में अब उसी पार्टी यानि भा ज पा के दवारा माउंट आबू के मूल वाशिंदों को पट्टे नहीं दिए जाने की मांग को लेकर राजनीतिक हलके में एक नया मोड़ आ गया है कि, आखिर ऐसी नोबत क्यों आन पड़ी ? कि, घर के ही यानि ( भा ज पा ) पार्टी के ही लोग बगावत पर उतर आएं ।
वैसे भी माना जाएं तो इस नगर की सरकार में यह मामला अथवा कहानी दूसरी बार दोहरायी जा रही है । पालिका में अपने साथ में पालिका के कार्मिको के दवारा दुर्व्यवहार को लेकर के पार्षद व् एंग्री यंग मेन भगवाना राम ( जीतू भाई ) भी धरना-प्रदर्शन के माध्य्म से अपना आक्रोश व् तेवर नगर पालिका कार्यालय के बाहर दिखा चुके है । (पूरी खबर)
लेकिन दूसरी बार पार्षद राधा राणा की अगुवाई में माउंट आबू के मूल निवासियों को पट्टे कई वर्षो से नहीं दिए जाने की मांग को लेकर दिया गया धरना ज़िला एवम् राज्य की राजे सरकार के लिए कई गम्भीर प्रश्न खड़े कर रही है ।
इन प्रश्नो का जवाब देने के लिए सोमवार को पालिका कार्यालय का आलम सुबह से लेकर दोपहर तक यह था कि,,वहाँ पर इस धरने को लेकर के पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देने के लिए कोई जिम्मेवार अधिकारी घटना स्थल पर मौजूद नहीं था । जो कार्मिक वहाँ पर थे वे भी अपने मातहतों के इस कार्य के प्रति क्या व् क्यों बोलेंगे ? हाँ यह प्रायः ही प्रश्न ज़हन में सभी के उठा या उठता होगा कि,, आखिर में जिस राज्य सरकार को ही इस समस्या का समाधान करना है । उसी राजस्थान में भाजपा की राजे सरकार को इस दुख-दर्द का अहसास भी है या नहीं ? या फिर यह ग़ुब्बार भी ज्ञापन व् धरने के बाद मिलने वाले आश्वाशन तक ही अपनी यात्रा पूर्ण कर पर पाता है ।
क्यों कि, प्रायः यह परम्परा रही है कि, अपनी राजस्थान की महारानी “राजे” सरकार के विरुद्ध उठी आवाज या विरोध, महज दिखावटी ज्यादा होता है,बनिस्पत के कि, मांग के निर्णायक स्थिति के मोड़ तक पहुँचने तक ?