मंदिर में मिले दो हजार साल पुराने शैल चित्र
आबूरोड। चंद्रावती नगरी में उत्खनन के चलते गुरूवार का दिन बहुत ही खास रहा। टीम को चंद्रावती के तीस हजार साल पुराने इतिहास के प्रमाण मिले है। क्षेत्र मेंं आदिम युग के लोगों द्वारा उपयोग में लिए जाने वाले पत्थरों के औजार व उपकरण मिले है। आदिम युग के लोगों द्वारा इन पत्थरों के उपकरणों का उपयोग शिकार करने, छीलने व मारने के लिए किया जाता था। वहीं चंद्रावती के रेडवांकला की पहाडिय़ों में मंदिर में करीब बारह हजार साल पुराने शैल चित्र मिले है। क्षेत्र में आदिम युग के प्रमाण मिलने से टीम में उत्साह का माहौल है।
चंद्रावती के गौरवशाली इतिहास से अब धीरे-धीरे पर्दा उठने लगा है। उत्खनन से जहां नित नई वस्तुएं, केनाइन दांत, हड्डिया, मिटटी के बर्तन, मिटटी के खिलौने, लोहे की कीलें, जले अन्न के दाने, तांबे की रिंग, चूने की भटटी, किला, किले के गोल बुर्ज, किले का प्रवेश द्वार आदि निकल रहे है। इसी के चलते उत्खनन टीम को बुधवार को एक महत्वपूर्ण उपलब्घी हांसिल हुई।
राजस्थान विद्या पीठ के प्रोफेसर जीवन खरकवाल के अनुसार चंद्रावती क्षेत्र में पहाडिय़ों पर बने मंदिर में बारह हजार साल पुराने शैन चित्र मिले है। साथ ही नीम का थाना राजस्थान महाविद्यालय के व्याख्याता को आदिम युग के लोगों द्वारा उपयोग में किए जाने वाले पत्थरों का उपकरण मिले है। इन उपकरणों का उपयोग शिकार करने के साथ विभिन्न कार्यो के लिए किया जता था। अलग-अलग कार्यो के लिए अलग-अलग उपकरण बनाए गए थे।
पीढ़ी दर पीढ़ी विकास
शोधार्थी रोहित मेनारिया के अनुसार क्षेत्र में तीस हजार साल पुराने आदिम सुग के प्रमाण मिले है। आदिम युग की शुरुआत के साथ लोगों ने स्टेप बाय स्टेप विकास के सौपान तय किए। क्षेत्र के लोगों ने पीढ़ी दर पीढ़ी विकास किया। मेनारिया के अनुसार यह क्षेत्र बड़ा ही रिच एरिया है। तीस से बीस हजार साल पुराने ठस क्षेत्र में आदिम लोगों के उपयोग में लिए जाने वाले उपकरण मिले है। आदि मानव फल-फूल व शिकार कर जीवन यापन करता था। इसी के चलते उसने पत्थरों की किनारों को धारदार बनाया। विभिन्न तरह के उपकरण बनाए।
नाम के अनुरुप काम
पुरातत्व विभाग के वरिष्ठ प्रारुपकार केपीसिंह के अनुसार हंटिंग व गेदरिंग युग के दौरान आदि मानव खोदने, काटने, छीलने, मारने के औजार बनाए। नदी किनारे मंदिर की तलहटी में मिले इन उपकरणों में फलक ,डिस्क व स्क्रेचर औजार मिले है। साथ ही खोदने के लिए रापी नुमा औजार बनाया गया। एक पत्थर पर करीब आठ बार धार कर तीखा बनाया गया। क्षेत्र में मिले पत्थरों के ब्लेड के अनुरुप इनकी धार इतनी तेज थी कि हाथ लगाने पर कटने का भय था। तीस हजार साल पुराने होन के बावजूद अभी भी पत्थरों की धार में तीखापन है। लम्बे समय तक पड़े होने के कारण राउंडेड हो गए।
18 बावडिय़ां
क्षेत्र के तत्कालीन लोग पानी के महत्व के बारे में भली भांति परिचित थे। इसी के चलते उन्होंनें क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बावडिय़ां बनाई। डॉ. केपीसिंह के अनुसार अभी तक वह चंद्रावती क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर 18 बावडिय़ां ट्रेस कर चुके है। यह कार्य अब भी जारी है। क्षेत्र में और भी बावडिय़ां होने की संभावना है।