माउंट आबू | राजस्थान वन विभाग का एक अधिकारी की साजिश माउंटआबू और उसके पर्यटन उद्योग को भारी पड़ सकती है। अगर इस अधिकारी की साजिश कामयाब हो गई तो माउंटआबू का पर्यटन चौपट हो सकता है। यहां सैलानियों के आने पर अंकुश लग जाएगा। दरअसल यह अधिकारी अपनी मनमानी के जरिए माउंटआबू आबू रोड मार्ग पर राजस्थान वन विभाग का नाका लगाने की कोशिश कर रहा है। जबकि नियमों के तहत राजस्थान वन विभाग सेंचुरी के क्षेत्र में आनेवाले रास्तों पर ही नाका लगा सकता है जहां लोग सेंचुरी में जाते है। अधिकारी और वन विभाग के खिलाफ कांग्रेस और बीजेपी एकजुट होकर आंदोलन करने की तैयारी में है।
ऐसा हुआ तो माउंटआबू में फिर 2008 जैसा आंदोलन हो सकता है। यह अधिकारी राजस्थान वन विभाग का है जो इसी साल जून में रिटायर होनेवाला है। लोग यह भी कह रहे है कि इस बहाने जाते-जाते वह इस साजिश को रचकर अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। अब माउंटआबू में इस तथ्य को लेकर लोगों में आक्रोश है और यह आंदोलन का भी रूप ले सकता है। क्योंकि इस स्थिति में माउंटआबू का पर्यटन पूरी तरह चौपट हो जाएगा।
राजस्थान वन विभाग माउंटआबू में अपनी कारगुजारियों को लेकर पहले भी बदनाम रहा है। राजस्थान वन विभाग के एक अधिकारी अपनी मनमानी के जरिए यहां नाका लगाने की तैयारी कर रहा है। अगर वह अपनी साजिश में कामयाब रहा तो माउंटआबू आनेवाले यात्रियों को यात्री कर के रूप में भारी भरकम रकम कर के रुप देना पड़ेगा। फिलहाल माउंटआबू नगर पालिका का आबू रोड-माउंटआबू मार्ग पर नाका है जो प्रति यात्रियों से 10 रुपये वसूलती है लेकिन यही रकम आनेवाले सैलानियों और यात्रियों को भारी पड़ती है।
राजस्थान वन विभाग अधिकारी ने अगर इस मार्ग पर अवैध रूप से नाका लगा दिया तो माउंटआबू में सैलानियों का आना बंद हो सकता है। क्योंकि वह प्रति यात्रियों से नाका कर के रूप में 50 रुपये वसूलेगा। माउंटआबू आनेवाली डीजल गाड़ियों से 200 रुपये ,पेट्रोल गाड़ियो से 400 रुपये वसूल सकता है। नियमों को ताक पर रखकर वन विभाग का यह अधिकारी इसी 15 मई से नाका स्थापित करने की तैयारी में है। हालांकि राजस्थान वन विभाग को यह अनुमति नहीं है वह सिर्फ सेंचुरी क्षेत्र में आनेवाले रास्तों पर ही नाका लगाकर कर वसूल सकता है। जबकि यहां माउंटआबू नगर पालिका यात्री कर एक नाके के जरिए वसूलती है तो राजस्थान वन विभाग का यह नाका कानूनी तौर पर बिल्कुल अवैध है।
दरअसल माउंटआबू को 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने सेंचुरी क्षेत्र से अलग कर दिया था। दरअसल माउंटआबू में उस वक्त हुए बड़े आंदोलन के बाद वसुंधरा यहां आई थी और उन्होंने यह फैसला दिया था। जिसके बाद माउंटआबू के सेंचुरी क्षेत्र से अलग कर दिया था। गौर हो कि माउंटआबू की नगर पालिका ब्रिटीश काल की नगर पालिका है जो देश की सबसे पुरानी नगर पालिका है। उस वक्त वन विभाग के डीएफओ ने एक चाल के तहत लखनऊ में पत्र भेजकर सेंचुरी क्षेत्र मे विकास के नाम पर शुल्क वसूलने का हिसाब किताब बना लिया। दरअसल माउंटआबू नगर पालिका को यात्री कर के रूप में जो भी आय होती है उसका तीस फीसदी हिस्सा राजस्थान वन विभाग विकास के नाम पर तय किया था, जबकि उसके क्षेत्र में कोई भी विकास नहीं है। सड़के टूटी फूटी है। दरअसल यह समझौता एक शर्त के तहत हुआ था कि राजस्थान वन विभाग को विकास कार्यों का प्रमाण देना होगा। लेकिन जब उसने नहीं भेजा तो माउंटआबू नगर पालिका ने भी यह रकम (30 फीसदी) कर के रूप में भेजनी बंद कर दी। इससे वन विभाग के एक अधिकारी ने जबरन नाका बनाकर कर लेने का ऐलान कर दिया है। राजस्थान वन विभाग को माउंटआबू नगर पालिका अबतक करोड़ों रुपये दे चुकी है लेकिन विकास जीरो है। इस रकम का इस्तेमाल सफारी पार्क के लिए भी किया जाना था।
सात मई को डीएफओ ने सिरोही के अखबार में यह छपवाया कि वह अपना नाका स्थापित कर यात्री कर वसूलेगा। जबकि आबू रोड-माउंटआबू मार्ग पीडब्लूयडी का है वन विभाग का नहीं लिहाजा वह कानूनी तौर पर ऐसा नहीं कर सकता है। 2008 में भी राजस्थान वन विभाग ने नाका लगाने की जबरन कोशिश की थी और यह साजिश उसकी नाकाम रही थी। इसलिए फिर एक बार वह अपनी इस साजिश को अंजाम देने पर तुला है। अगर समय रहते राज्य और केंद्र सरकार ने इसपर ठोस कार्रवाई नहीं की तो यह मुद्दा माउंटआबू में एक बार फिर आंदोलन का रूप ले सकता है। और अगर ऐसा हुआ तो माउंटआबू का पर्यटन मिनटों में चौपट हो सकता है।