माउंट आबू, 10 मई। अन्य पिछड़ा वर्ग राष्ट्रीय आयोग अध्यक्ष वी. ईश्वरैय्या ने कहा कि कड़ा परिश्रम, सतत अभ्यास, लक्ष्य के प्रति पूरी सजगता, संगठन भावनाओं को समझकर समय पर सही निर्णय लेना, यह जीवन में सफलता के सूत्र हैं। खेल के मैदान में सफलता को लेकर आत्मविश्वास में किसी तरह की कमी नहीं होनी चाहिए। खिलाड़ी को खेल के अंतिम क्षण तक अपनी पूरी ताकत झोंकनी चाहिए। हारने के बावजूद भी स्वयं के प्रति विश्वास को कम नहीं करना चाहिए। हार भी आगे बढऩे के लिए कोई न कोई पाठ पढ़ाती है। यह बात उन्होंने रविवार को प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के ज्ञान सरोवर में खेल प्रभाग द्वारा आयोजित सम्मेलन के खुले सत्र को संबोधित करते हुए कही।
ईश्वरैय्या ने कहा कि नियमित सहज राजयोग का अभ्यास स्वयं के आत्मविश्वास को बढ़ता है। जीवन भी एक खेल की तरह है जहां कर्मक्षेत्र के मैदान में अनेक प्रकार की कठिनतम चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन उन चुनौतियों का स्वयं पर कोई नकारात्मक असर न हो उसके लिए स्वयं के मनोबल को बढ़ाने का श्रेष्ठ उपाय सहज राजयोग है।
प्रभाग अध्यक्ष बसवराज ऋषि ने कहा कि खिलाड़ी को अपनी टीम के हर खिलाड़ी की मानसिकता को बारीकी से समझना जरूरी होता है, अन्यथा टीम भावना को मजबूत करना टेढ़ी खीर होता है। जब तक खिलाडिय़ों की मनोदशा को न समझा जाए तब तक सफलता प्राप्त करना संदिग्ध बना रहता है।
साई खेल प्राधिकरण सहायक निदेशक अमरज्योति सिंह ने कहा कि खेल प्रशिक्षण तो जीवन भर चलता रहता है। नित नई तकनीकों को सीखने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। बदलते परिवेश में प्रतिस्पद्र्वाओं का दौर है, ऐसे मौके पर खिलाड़ी को साहसपूर्वक अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन करने में पीछे नहीं हटना चाहिए।
प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका बी. के. शशि बहन ने कहा कि राजयोग से विचारों में सकारात्मक चिंतन की सीख मिलती है जो खिलाडिय़ों के लिए जरूरी है। खेल के मैदान में हार और जीत तो एक स्वभाविक प्रक्रिया है किंतु हार में भी मानसिक संतुलन बनाए रखना और उससे भविष्य के लिए शिक्षा ग्रहण करने की क्षमता राजयोग के माध्यम से प्राप्त करना सुगम कार्य है।
मुख्यालय संयोजक बी. के. जगबीर ने कहा कि राजयोग मन की सुषुप्त चेतना को जागृत कर आत्मिक शक्तियों को विकसित करने में अहम भूमिका अदा करता है।