भारत | प्रकर्ति कब क्या खेल खेलती है कोई नहीं जान सकता, बड़े सोभाग्य की बात है, 23 मार्च जिस दिन भारत माता के वीर पुत्र अपने देश की आज़ादी के लिए हस्ते हस्ते सूली चढ़ गये, इस वर्ष उसी दिन होली भी मनाई जा रही है |
जलती होली में अगर इन नेक शहीदों का चेहरा दिख जाए तो खुद को भाग्यशाली समझना, सोने से पहले एक बार भगत सिंह की टोल्ली को नमन जरुर करना |
होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। यह प्रमुखता से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता हैं | माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है। हिरण्यकश्यप ब्रह्माजी की कठोर तपस्या करता है। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी वरदान देते है कि उसे ना कोई घर में मार सके ना बाहर, ना अस्त्र से और ना शस्त्र से, ना दिन में मरे ना रात में, ना मनुष्य से मरे ना पशु से, ना आकाश में ना पृथ्वी में। इस वरदान के बाद हिरण्यकश्यप ने प्रभु भक्तों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, लेकिन भक्त प्रहलाद के जन्म के बाद हिरण्यकश्यप उसकी भक्ति से भयभीत हो जाता है, उसे मृत्यु लोक पहुंचाने के लिए प्रयास करता है। इसके बाद भगवान विष्णु भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार लेते है और हिरण्यकश्यप का वध कर देते हैं |
जो देशभक्ति की मशाल जल सके तो कहूँ होली है। खून इस बात पर तेरा उबल सके तो कहूँ होली हैं।
मेरे वतन में कुत्तों की जबान बड़ी लंबी हो गयी यारों। भारत माता की जय मुह से निकल सके तो कहूँ होली है।
गलती पर गलतियां करता फिर रहा है वो मकलूफ। मरने से पहले कन्हैया संभल सके तो कहूँ होली है।
ये मेरे देश के हिन्दू को क्या हो गया ईश्वर, बवाल आरक्षण का थम सके तो कहूँ होली है।
देश में कैसे बढ़ रही है गिनती गद्दारों की, कोई इनको मसल सके तो कहूँ होली है
किसी का दिल नहीं दुखता वतन की पीड़ा पर। सभी का दिल पिघल सके तो कहूँ होली है।
कविता के लेखक: गौरव गोयल
कुछ एसे भी मनाये होली
जैसे की इस वर्ष भगत सिंह, सुखदेव व् राजगुरु की शहादत के दिन ही होली भी है, तो आप गुलाल का रंग केसरिया जरुर चुने, देश भक्ति में लींन भारत में के वीर पुत्र देश की आज़ादी के लिए शहीद हो गए, केसरिया रंग देश भक्ति का प्रतिक है, इस बार आप केसरिया रंग के गुलाल से होली खेल शहीदों को दे श्रधांजलि | पानी का उपयोग न करे, होली रंगों का त्यौहार है, गुलाल से होली खेलना का अलग आनंद है, इससे आपकी शारीर को नुक्सान भी नहीं पहुँचता और न ही पानी ख़राब होता है |