मुझमे भी आत्मा बस्ती है: दीपक अग्रवाल


| December 22, 2014 |  

मुझमें भी आत्मा बसती है-

जन्म जिसने दिया मुझे, कहती हूँ उन्हें भगवान्,
यहाँ आकर देखा मेने, ऐसे भी होते है हैवान |

देखते हो तुम ऐसे मुझको, जेसे तुम्हारी कोई बहन नहीं,
पल-पल, डर-डर के जीती हूँ, अब होता मुझसे सहन नहीं |

में भी एक मनुष्य हूँ, मुझमे भी आत्मा बसती है,
नारी रूप में मह्सुश हुआ, खुद आत्मा मुझपे हंसती है |

अत्याचार अब तो बंद करो, मुझे ऐसा दर्द बर्दास्त नहीं,
हैवान होतो घर में रहो, मुझे एसा मर्द बर्दाश्त नहीं |

देश को माता कहते हो, औरत की कोई फिकर नहीं,
जन्म तुझे औरत ने दिया, उसकी भी कोई कदर नहीं……????

(भूल मत तू द्वापर-त्रेता )

द्रौपती-सीता गवाह है, दुर्योधन- रावण राख हुए,
जिसने भी हमको ललकारा, वो सारे जल के खाख हुए |

(मत भूल तू कलयुग )

युग भले ये कलयुग है, मुझमे भी द्रौपदी –सीता है,
तुझमे अगर दुर्योधन है, मुझमे भी भीम जीता है |

चिर दूंगी तुझको पूरा, अगर तूने अब आँख निकाली,
भूल जाउंगी, मनुष्य हूँ, बन जाउंगी दुर्गा- काली |

मर्यादा में रहना सिख, मर्यादा पुरुषोतम राम बन,
औरत से अगर जन्म लिया है, एक अच्छा इन्शान बन |

फिर भी अगर तू नहीं बदलेगा, अवतार लेंगे विष्णु-शंकर,
आज नहीं तो कल निश्चित है, विनाश तेरा होगा भयंकर |

From writers desk :
This poem is based on the Rape cases frequently taking place in our country. I am dedicating this poem to all the sisters, daughters and mothers of my motherland India! For all the brave womens of our country who never loose their fight against crime. Safety of all the womens in our country is highly concerned. ..JAI HIND.

Deepak Agrawal, Ahmedabad

 

 

Comments box may take a while to load
Stay logged in to your facebook account before commenting

[fbcomments]

Participate in exclusive AT wizard

   AT Exclusive    Writers   Photography   Art   Skills Villa