किताब – ए – ज़िन्दगी
क्या है किताब-ए-ज़िन्दगी ,
क्यूं समझ मै नहीं आती है ,,
कभी दर्द पर मलहम है ,
तोह कभी सीना चीर जाती है |
क्या चाती है मुझसे ,
क्यूं मुझे सताती है ,,
कैसे करूं इसे बयान ,
हर बार अधूरी रेह जाती है |
कभी करती पंचायत है ,
कभी खुशियों मैं रम जाती है,,
यह है वो किताब-ए-ज़िन्दगी ,
जो रोते हुए को हँसाती है |
क्या है हिसाब-ए-ज़िन्दगी,
क्यूं इत्तना तड़पाती है ,,
रंग लग्गा हाथों मैं पर ,
तस्वीर बन नहीं पाति है |
सियाही भरी क्लम है पर ,
लकीर ओझेल हो जाती है ,,
यह है हिसाब -ए – ज़िन्दगी ,
कहानी मैं है अर्थ छुपाती है |
कैसे होगी सफ्फल ज़िन्दगी ,
कैसे करूं सपना साकार ,,
कैसे सजाऊं रंगो से तस्वीर ,
कैसे करूं सियाही से वार |
यह तोह वो ज़रिया है जो ,
रूह को अल्ला से मिल्लाती है ,,
धरती पर रेहने वालों को भी ,
जन्नत की सैर करवाती है |
उठती है कलम बडी दुआओ से ,
और फिर गिर जाती है ,,
फिर भी हर बार किताब-ए-ज़िन्दगी ,
यूं ही अधूरी रेह जाती हैं |
लेखक: वर्षा, जम्मू कश्मीर