वाह रे ज़माने तेरी हद हो गयी”मिसेज” के आगे “मदर” रद्द हो गयी
बड़ी मेहनत से जिसने पाला आज वो मोहताज हो गयी
और कल की “छोकरी” तेरी सरताज़ हो गयी
“बीवी” हमदर्द् और माँ सरदर्द हो गयी
वाह रे जमाने तेरी हद हो गयी
पेट पे सुलनाने वाली “माँ” पैरो में सो रही है
“बीवी” के लिये ‘लिम्का’ और ‘माँ’ पानी के लिये रो रही है
सुनता नहीं कोई वो आवाज देते सो गयी
“माँ” माँजती बर्तन वो सजती-संवरती है
अभी निपटी नहीं ‘बुडिया’ तू उसे उस पर बरसती है
अरे दुनिया को आई मौत ,मौत तेरी कहा गुम हो गयी
वाह रे ज़माने तेरी हद हो गयी
अरे जिसकी “कोंख” में पला
अब उसकी छाया बुरी लगती है
बैठे होंडा पे महबूबा कन्धे पे हाथ जो रखती है
वो यादे अतीत की वो मोहब्बत “माँ” की सब रद्द हो गयी
बेसक हुई माँ अब दिये हुए टुकड़ो में पलती है
अतीत को याद कर तेरा प्यार पाने को मचलती है
अरे मुसीबत जिसने उठाई वो खुद मुसीबत हो गयी
वाह रे ज़माने तेरी हद हो गयी
लेखक: रविन्द्र पूरी गोस्वामी, उदयपुर