माउन्ट आबू का मास्टर प्लान 6 साल के इंतजार के बाद केन्द्र से स्वीकृत। राज्य सरकार को भेजा प्लान।
माउन्ट आबू की जनता में जागी उम्मीद की किरणे। अब स्वीकृति मिलेगी निर्माण कार्यो को।
माउन्ट आबू, राजस्थान के इकलौते हिल स्टेशन माउन्ट आबू के लिये एक बडी किरण की उम्मीद उभरी है। जिस चीज का पिछले 6 सालो से इंतजार था वो अब पूरा हो गया है। माउन्ट आबू के मास्टर प्लान को केन्द्र सरकार ने पास कर माउन्ट आबू के लोगो को भारी राहत प्रदान की है। स्थानीय लोगो को जैसे ही यहां खबर मिली उन्होने कहा अब लगता है माउन्ट आबू की हर तकलीफ का निराकरण हो जायेगा।
एसे पद गया था माउन्ट आबू का मास्टर प्लान खटाई में
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से 25 जून 2009 को माउन्ट आबू को ईको सेन्सटीव जोन घोषित किया गया था । सर्वोच्च न्यायालय ने 2 मई 2002 को माउन्ट आबू पर नये निर्माण कार्यो की रोक लगाई थी जिसके बाद आबू की जनता को सर्वोच्च न्यायालय ने लम्बी लडाई लडनी पडी थी। आखिर 2009 में ईको जोन घोषित किये जाने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर्यटन स्थल को टूरिजम जोनल मास्टर प्लान बनाने के केन्द्र सरकार को आदेश दिये थे साथ ही जनता की मांग पर कि इन दो सालों में जनता को निर्माण की स्व्ीकृति किससे मिलेगी जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने माउन्ट आबू नगरपालिका पर निर्माण स्वीकृति के निर्णय के बाद उन पत्रावलियों को मोनेटरींग कमेटी में अनुमोदन कराने के लिये एक मोनेटरींग कमेटी का गठन किया गया था जिसका कार्यकाल मात्र 2 वर्ष था यानि 25 जून 2011 को यह अवधि समाप्त हो चुकी थी लेकिन केन्द्र सरकारव राज्य सरकार द्वारा माउन्ट आबू के मासटर प्लान की तैयारी में देरी होने लगी जिसके लिये भी सर्वोच्च न्यायालय ने मात्र 3 माह का समय बढाते हुए केन्द्र सरकार को कडी फटकार लगाई थी लेकिन क्योंकि यह मामला 2011 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णित किया जा चुका था और सरकार ने इस ओर ध्यान देना ही बंद कर दिया। आखिर माउन्ट आबू का मास्टर प्लान खटाई में पड गया।
सांसद देवजी भाई पटेल ने संसद में गुंजाया मामला
जब यह मामला सिरोही जालौर के सांसद देवजी भाई पटेल ने संसद में गुंजाया और यही नहीं वे कई बार देश के वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर से मिले और आखिरकार यह मास्टर प्लान केन्द्र से तब स्वीकृत हुआ जब राजस्थान उच्च न्यायालय में माउन्ट आबू नगरपालिका की अध्यक्ष सुरेश थिंगर और उनके मण्डल ने यह मामला उठाया कि अब राजस्थान उच्च न्यायालय की रोक 5 फरवरी 2015 को आप द्वारा ही हटाई जा चुकी है। लेकिन यहा मोनेटरींग कमेटी जनता को कोई राहत नहीं दे पा रही है। जिस पर 1 अक्टूबर 2015 को राजस्थान उच्च न्यायालय के डबल बैन्च में न्यायाधिपति गोविन्द माथुर ने इसे सख्तीसे लिया और केन्द्र सरकार को 2 सप्ताह में मास्टर प्लान सर्वोच्च न्यायालय के आदेशो के बाद भी क्यो स्व्ीकृति नहीं किया गया जिस पर रिर्पोट मांगी। आखिर केन्द्र सरकार को रिर्पोट पेश करनी थी उच्च न्यायालय को जवाब देना था। उन्होने इस मास्टर प्लान को स्वीकृत कर राजस्थान के मुख्य सचिव को भिजवा दिया।
आखिरकार पास हो गया सियासी दावपेच के चक्रव्यू में उलझा माउन्ट आबू का मास्टर प्लान
सियासी दावपेच और कोर्ट कचहरियों की चक्रव्यू में उलझा माउन्ट आबू का मास्टर प्लान। आखिरकार पास हो गया है। केन्द्र सरकार ने माउन्ट आबू के मास्टर प्लान को 2030 तक के लिये पारीत किया है। अब राजस्थान सरकार इसी महिने राजपत्र जारी कर कानूनी प्रावधान के तहत माउन्ट आबू के लोगो को समस्त निर्माण और मरम्मत की स्व्ीकृति प्रदान करेगी। जानकारों का मानना है कि यह राहत भी इसी महिने से शुरू हो जायेगी जिसके लिये राजस्थान सरकार का नगरपालिका अधिनियम 1959 के तहत और 2009 ईको सेन्सटीव जोन के कानूनों के तहत स्वीृकति जारी करने के लिये नगरपालिका माउनट आबू अधिकृत रहेगी। यानि अब मोनेटरींग कमेटी की भूमिका ना के बराबर हो गई है क्योंकि गजट नोटिफिकेशन जारी होने के बाद और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार समस्त निर्माण और मरम्मत की मंजूरी का अधिकार नगरपालिका को हो जायेगा। लिहाजा अब माउन्ट आबू नगरपालिका की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। गौर हो कि माउन्ट आबू का मास्टर प्लान का मामला 6 सालो से अटका पडा था।