सबसे पहला सवाल यही है की आरक्षण ने इस देश की कितना भला किया है, क्या मिला है हमे इस आरक्षण से! सायद सभी का जवाब होगा भेदभाव, जाती-पात, वर्ण भेद इत्यादि! आरक्षण ने समाज को सिर्फ और सिर्फ बाटने का काम किया है! जो इस आरक्षण से लाभान्वित हुए है वो जरुर इस से सहमत होंगे की आरक्षण मिलना चाहिए, जिन्हें लाभ नहीं मिला वो कहते है की आरक्षण नहीं मिलना चाहिए! आरक्षण ने जातियों मे असमानताएं ही पैदा की है! आरक्षण का फायदा जाती विशेष को न होकर के जाती के अंदर पहले से व्यवस्थित लोगो को ही हुआ है!
आरक्षित जाती के कितने लोगो को फायदा हुआ क्या आजतक किसी सरकार ने जनता या उस जाती को बताया है! आज भी आरक्षित जातियों के अंदर आर्थिक विषमतायें मोजूद है! कंही-कंही तो एक ही परिवार के सभी सदस्य सरकारी या गैर-सरकारी संस्थानों मे नौकरी कर रहे है और दूसरी तरफ एक ही परिवार के सभी सदस्य बेरोजगार है! क्या ये आर्थिक विषमतायें उचित है!आरक्षण हमारे देश के लिए गले की फांस बन चुका है, जिसे देखों आरक्षण की मांग कोलेकर सड़कों पर उतर आता है। लोग किस जाति धर्म और मजहब के नाम आरक्षण कीमांग करते है ? जबकि इस देश में सभी को जीने का सामान्य अधिकार है फिर क्यों हमखुद ही अपने आपको और अपनी समाज को नीचा दिखाकर औरों की अपेक्षा कम आंकेजाने की मांग करते है। सही मायने में सरकार आरक्षण की जंग की जिम्मेदार है।
आरक्षण देश की बर्बादी और मौत का जिम्मेदार है
क्योंकि आरक्षण मांगने वाले या आरक्षित लोग कहीं ना कही सामान्य वर्ग से कमजोर होते है और ऐसे ही कमजोर लोगोंके हाथों में हम अपने देश की कमान थमा देते है। जो उसको थामने लायक थे ही नहीं।बस उन्हें तो यह मौका आरक्षण के आधार पर मिल गया।आरक्षण की अगर सच्चा और सही फायदा कमजोर और गरीब तबके को देना है तो आरक्षण को जाती-विशेष न देकर के आर्थिक रूप से कमजोर लोगो को देना चाहिए! आज आरक्षण से हर छेत्र पिछड़ा हुआ है वो सभी लोग जो उस पद के लिए काबिल नहीं भी है लेकिन आरक्षण की आड़ मे जगह पा जाते है चाहे वो नौकरी हो या फिर शिक्षा! आज भी हर जाती मे गरीब भरे पड़े है सहरो की अपेक्षा गांवो के हालत और भी ख़राब है! वंहा गरीब आज भी गरीब ही है चाहे वो पिछड़ी जाती से हो या स्वर्ण जाती से! गरीब गरीब होता है न की जाती अगड़ी या पिछड़ी होने से उसे कोई फायदा होगा!
जरा गौर करें आरक्षण से होने वाले नुकसानों पर तो शायद यह जंग थम जाए और मांगसहमति में बदल जाए। आज हमारे देश में कई इंजीनियर और डॉक्टर्स आरक्षित जातिसे है। जिनकी नियुक्ति को आरक्षण का आधार बनाया गया। एक सामान्य वर्ग,सामान्य जाति के छात्र और एक आरक्षित जाति के छात्र के बीच हमेषा ही सामान्यजाति के छात्र का शोषण हुआ, चाहे स्कूल में होने वाला दाखिला हो , फीस की बात होया अन्य प्रमाण पत्रों की। इन सभी आरक्षित जति वाले छात्र को सामान्य जाति वालेछात्र से आगे रखा जाता है।
क्या सामान्य जाति वाले छात्र के पालक की आमदनीआरक्षित जाति वाले छात्र से अधिक होती है ?
शायद नहीं फिर भी उसे स्कूल फीस मेंकटौती मिलती है और साथ-ही साथ छात्रवृति भी दी जाती है। इतना ही नहीं परीक्षा मेंकम अंक आने पर भी सामान्य जाति वाले छात्र के अपेक्षा उसे प्राथमिकता पर लियाजाता है। जबकि सामान्य जाति वाला छात्र स्कूल की पूरी फीस भी अदा करता है औरमन लगाकर पढ़ने के बाद परीक्षा में अच्छे अंकों से पास भी होता है। फिर भी उसकेसाथ यह नाइंसाफी सिर्फ इसलिए होती है क्योंकि वह सवर्ण जाति से वास्ता रखता है।
देश में विकास की कड़ी को जोड़ने के लिए कुछ ऐतिहासिक पहल तो की गई और इतिहास भी बना मगर विकास का नहीं बल्कि भ्रष्टाचार की भेट चढ़ रहे देश के विनाश का | मामला 2 जी स्पेक्ट्रम का हो कॉमनवेल्थ गेम्स का हो या फिर चारा घोटाला, आदर्श घोटाला का हो। सपने और स्कीम विकास के धरातल से ही शुरू की गईथी मगर विकास जस की तस धरातल पर ही रहा। आम जिंदगियों की बात, अब अगर बात की जाए आम और खास सेजुड़कर बने इस विषाल भारत के भविष्य की। तो वह भी पूरी तरह से अंधकार में है।
क्योंकि डॉक्टरों की ही तरह इंजीनियर्स को भी आरक्षण के आधार पर आसानी से मौकामिल जाता है। जबकि उन्हें तो यह से पास कर देते है उनमें कितनी जिंदगियां अपनाबसेरा बनाकर सपना देख रही होगी अपने सुनहरे भविष्य का वही कई ऐसी सड़कों काजाल को वह एक इषारे में पास कर देते है जिन पर दौड़ते कई लोग मंजिल की आस मेंदौड़े जा रहे है। जिन्हें शायद ही मंजिल मिल सके क्योंकि जिन रास्तों के सहारे वहमंजिल पाना चाहते है वह आरक्षित सोच से बनाई गई है
लेखक..
-भरत राजपुरोहित