माउंटआबू -14 सितम्बर सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद जारी हुए आदेश की पालना को लेकर प्रदेश के अतरिक्त मुख्य वनप्रतिपालक की ओर से हाल ही में जारी किये गए सर्कुलर ने माउंटआबू के अभ्यारण की सीमाओ से लगते क्षेत्र में निर्माण को लेकर उपजी भ्रांतियों पर उस समय विराम लग गया जब इस मामले को लेकर आबू मोनेटरिंग कमिटी के सदस्य सौरभ गांगडीया ने राज्य सरकार के अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन सरंक्षक एवं मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक राजीव त्यागी से बात की |
मानिटरिंग कमिटी के सदस्य सौरभ गांगडीया ने बताया की हाल ही में जारी एक आदेश के हावाले से जो खबरे सुनने में आई है उनको लेकर आबू क्षेत्र के लोगो को परेशान होने की जरूरत नहीं | उन्होंने बताया की उक्त आदेश माउंट आबू क्षेत्र में लागू नहीं होते है | गांगडीया बताया की इस संधर्भ में दूरभाष पर उन्होंने खुद राज्य सरकार के प्रधान अतरिक्त मुख्य वन सरंक्षक राजीव त्यागी से बातचीत कर स्थति स्पष्ट की है |
गांगडीया ने दूरभाष पर प्रधान अतरिक्त मुख्य वन सरंक्षक से हुई बातचीत का हवाला देते हुए बताया की अतरिक्त मुख्य वन सरंक्षक राजीव त्यागी ने कहा है की माउंट आबू में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशा अनुसार भारत सरकार के प्रयावरण मंत्रालय ने माउंट आबू को 25जून 2009 से इको सेंसेटिव जोन घोषित कर रखा है | और वर्तमान में इसी मंत्रालय द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर माउंट आबू के सभी निर्माणों पर स्वीक्रति के लिए मानिटरिंग कमिटी का गठन किया हुआ है | इसलिए माउंट आबू पर वनविभाग के उक्त आदेशो का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा गांगडीया के अनुसार त्यागी ने यह भी स्पष्ट किया है की उल्क्त आदेश अभ्यारण के दस किलोमीटर तक भीतरी क्षेत्र के बजरी और माइनिंग (गैर वानिकी ) कार्यो के लिए जारी किये गए है |
गांगडीया ने बताया की यह आदेश गोवा के अभ्यारण क्षेत्रो में बजरी और माइनिग के लिए सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गयी जनहित याचिका की सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय के आदेशो की पालना की प्रतिक्रिया है जिसमे सभी राज्यों को बजरी और माइनिग के लिए भारत सरकार के वन मंत्रालय को आनलाइन निस्तारण के लिए आवेदन करने की सुविधा उपलब्ध करने के लिए यह आदेश जारी किया गया था | और इन्ही आदेशो की पालना के लिए राज्य के अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन सरंक्षक एवं मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक ने यह आदेश प्रदेश के अभ्यारण क्षेत्रो के लिए जारी किये है | गौरतलब है की इस पूरे मामले में स्थानीय वनविभाग के आला अधिकारीयों के मौन को लेकर अभी भी लोगो में असमंजस बरकरार है |