माउंटआबू से 65 किलोमीटर दूर-वास्थानजी महादेव मंदिर,आबूराज है। गुरुशिखर के करीब ये मंदिर 5,500 साल पुराना पौराणिक मंदिर उस समय से है जब यहां 33 करोड़ देवी-देवताओं का आवाहन किया गया था। दुनिया का ये इकलौता मंदिर है जहां भगवान विष्णु से पहले इस मंदिर में भगवान शंकर की पूजा होती है।आबूराज इसलिए कहा जाता है क्योंकि अर्बुद पर्वत अर्बुद सर्प पर टिका हुआ है। नाग का नाम होने की वजह से ही आबूराज कहा जाता है।
अर्बुद पर्वत वह जगह है जहां 33 करोड़ देवी-देवताओं का आवाहन किया गया था। 33 करोड़ देवी देवताओं की एक साथ अरावली पर्वत पर अराधना की गई थी। इसका विवरण स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में मिलता है। वास्थान जी तीर्थ-यानि-भगवान शंकर और भगवान विष्णु की अराधना का एक तीर्थ। भगवान विष्णु और भगवान शंकर यहां एक साथ वास करते है। दुनिया में ये इकलौती जगह है जहां भगवान शंकर की पूजा की जाती है।यहां भगवान शंकर के साथ भगवान विष्णु तो है लेकिन अराधना सबसे पहले भगवान शिव की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि जो भी इस तीर्थ पर आकर कुछ भी मांगता है या मन्नते करता है उसे भगवान शंकर के साथ भगवान विष्णु का संयुक्त आशीर्वाद मिलता है।यही वो जगह है जहां भगवान शंकर की पूजा पहले करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा होती है।
पौराणिक कथा ये है कि बह्रा,विष्णु और महेश के संयुक्त अवतार भगवान दत्तात्रेय और कई ऋषि मुनियों की तपस्या के बाद 33 करोड़ देवी देवताओं का अरावली पर्वत पर आने का निमंत्रण दिया गया था।33 करोड़ देवी देवताओं का एक साथ जुटने का प्रमाण पृथ्वी पर सिर्फ एक बार यही मिलता है और वो भी यही अरावली पर्वत पर। 33 करोड़ देवी देवता अरावली पर्वत पर 11 दिन तक रहे। अर्बुद पर्वत पर भगवान शिव के मेहमान बनकर आए भगवान विष्णु। भगवान शंकर प्रसन्न हो गए।रात भर दोनों ने अर्बुदांचल की परिक्रमा की। रातभर भगवान विष्णु भगवान शंकर के मेहमान बने। इस बात से भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए और उन्होने घोषणा की कि —यहां आपकी पूजा मुझसे पहले होगी। सबसे पहले यहां भगवान शंकर की पूजा होगी और उसके बाद मेरी ।इसके बाद से ये मंदिर यहां बना और पूजा भगवान शंकर की पहले होती है। आरती भी भगवान शंकर की पहले होती है और उसके बाद भगवान विष्णु की। भगवान शंकर के सेवाभाव से भगवान विष्णु काफी प्रसन्न हो गए थे और उन्होंने ये व्यवस्था कायम की थी।सदियों पुरानी ये व्यवस्था आजतक चली आ रही है।
वास्थानेश्वर जी की बड़ी महिमा गायी गई है। कहते है शिवरात्रि, महाशिवरात्रि और सावन के हर सोमवार के दिन यहां भगवान शंकर और भगवान विष्णु की संयुक्त शक्तियां वास करती है। साधकों को यथोचित फल के साथ उनके दर्शन भी होते है और शक्तियां भी प्राप्त होती है। तभी वास्थानेश्वर जी को सिद्धियों का पीठ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि साधकों,तपस्वियों को यहां मनचाही सिद्धियां बहुत जल्दी प्राप्त हो जाती है। आबूराज में बड़े बड़े तपस्वियों और संतों ने तपस्या करके कई अनूठी सिद्धियां हासिल की है।
आबूराज के दर्शन की बड़ी महिमा है। ऐसी मान्यता है कि आबूराज की परिक्रमा करने वाले को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। श्रद्धालुओं या दर्शनार्थियों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। तभी से इस जगह को कामनाओं का वास यानि जहां सभी मनोकामनाएं पूरी होती है …कहा जाता है। स्कंद पुराण में माउंटआबू को अर्धकाशी कहा गया है। भगवान शंकर ने यहां खुद कहा है कि मैं अचलगढ़ और आबूराज में संयुक्त रुप से विराजता हूं।
संपादक
अनिल कुमार ऐरन, माउंटआबू