स्वामी विवेकानंद की तपस्या की माउंटआबू की गुफाएं
देश के जानेमाने संत और युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद का नाता माउंटआबू से भी रहा है। खेतड़ी महाराज के जब वह संपर्क में आए तब महाराज ने उन्हें माउंटआबू आने का भी निमंत्रण दिया था। स्वामी विवेकानन्द जी लंबा समय गुजरात के कई हिस्सों में व्यतीत करने के बाद माउंटआबू आए। यह वह समय था, जब माउंट आबू गुजरात का हिस्सा था। चंपा गुफा में उन्होंने चिंतन और ध्यान किया। स्वामी विवेकानंद ने यहां की चंपा गुफाओं सहित इस उद्यानु में भी कई महीनों तक तपस्या की थी । इस स्थान पर बना स्मारक और ये गुफाएं उनकी याद दिलाती है।
माउंटआबू के इसी उद्यान में उनकी मुलाकात खेतड़ी के महाराजा से हुई। माउंट आबू में नक्की झील के पास स्थित चंपा गुफा वह स्थान है जहां स्वामी विवेकानंद 1891 में चार माह के लिए रहे। यहां की चंपा गुफा उन्हें अपने ध्यान और समाधि के लिए इतनी भाई कि वह काफी समय तक रुक गए। चंपा गुफा रघुनाथ मंदिर परिसर में आज भी मौजूद है। यहां के लोगों को कहना है कि इस गुफा की ऐसी खासियत है कि यहां अद्भुत वातावरण व्यक्ति को सहज ही ध्यान लगाने पर विवश कर देता है और मन एकाग्र होने का लगता है। इस स्थान की अद्भुत वातावरण किसी भी भी व्यक्ति के लिए ध्यान-धारणा और समाधि में सहायक होता है।
आज 12 जनवरी को स्वामी विवेकानन्द की 153वीं जयंती है। 12 जनवरी को देश युवा दिवस के रूप में भी मनाता है। यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद शिकागो धर्म सम्मेलन में जाने से पहले चार महीने तक माउंटआबू के गुफा में रुके थे। उन्होंने चंपा गुफा में तीन महीने तक तपस्या की थी। चंपा गुफा को अब स्वामी विवेकानंद स्मारक के रुप में विकसित करने की मांग हो रही है और नक्की झील के पास ही स्वामी विवेकानंद के नाम से एक बड़ा उद्यान भी है। माउंट आबू में नक्की झील के पास स्थित चंपा गुफा वह स्थान है जहां स्वामी विवेकानंद 1891 में चार महीने के लिए रहे। शिकागो जाने से पूर्व स्वामी विवेकानंद माउंट आबू आए थे और यहीं से उन्होंने अपने एक मित्र गोविंद सहाय को पत्र लिखकर मन की पीड़ा व्यक्त की थी कि मेरे देश का युवा सोया हुआ है मैं उसे जगाना चाहता हूं।
इतिहासकारों के मुताबिक चंपा गुफा में स्वामी विवेकानंद के अलावा स्वामी रामानंद ने भी तपस्या की थी। अब प्रशासन ने चंपा गुफा सहित तमाम उन स्थानों का विकसित करने का फैसला किया है जहां स्वामी विवेकानंद रहे थे। अब तक चर्चाओं और पहचान से दूर माउंट आबू स्थित चंपा गुफा शीघ्र ही स्वामी विवेकानंद स्मारक के तौर पर पूरी दुनिया में पहचानी जाएगी। अपने ओज और संदेशों से स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को जिस उर्जा से भरा उस अनंत उर्जा को अब युवा यहां महसूस कर सकेंगे। स्वामी विवेकांनद के इसी स्मृति के रूप में जहां नक्की झील पर स्वामी विवेकानंद उद्यान है वहीं माउन्ट आबू में गुजरात पर्वतारोहण संस्थान को स्वामी विवेकानंद संस्थान के रूप में जाना जाता है। उनकी तपस्या स्थली आज उनके यादों के उन चिन्हों को समेटे हुए है जिन पहाडियों पर विचरण करते हुए उन्होने कभी तपस्या की थी। विवेकानंद का जीवन बताता है कि कैसे बिना किसी साधन और सुविधा के सिर्फ एक संकल्प के बल पर युवा समाज की देश की सोच बदल सकते हैं।