युवा निकले मतदाताओं को जागरूक करने,सोच….कर,समझ….कर और ठोक परख कर….करे अपना मतदान।
पहाड़ों की हरी भरी वादियों से घिरी पर्वतीय पर्यटन स्थली माउण्ट आबू में पालिका चुनावों का बुखार शहरवासियों में जमकर अपना असर दिखा रहा है। शहर की कोई ऐसी गली,नुक्कड़ या मोह“ा हो या अथवा फिर बाजार जैसी आम जगह सब जगह बस फंला-फंला उम्मीद्वारों के जीतने के कयास व एसकी संभावनाओं की गणित में माथापच्ची करते हुए शहर के वांशिदे हर कहीं पर नजर आ जाएंगें।
बहरहाल जब माहौल ही चुनाव का और वह भी नगर की सरकार का तो लाजिमी है कि माउण्ट आबू के 13,०8० मतदाता अपने आपने वार्ड,आवास,और आम समस्याओं के लिए इन्ही लोगों से ही आशा कर सकते है,उनकी इन तमाम आंकाक्षाओं पर कौन खरा उतर पाएगा,और जो पिछले कार्यकाल में पार्षद बनें,उन्होंने हमारें लिए क्या किया और कहा रहे वे विफल?
इन्ही सारी कवायदों को एक पेम्पलेट में छापकर शहर के कुछ युवा संजय अग्रवाल के नेतृत्व में निकले है माउण्ट आबू के हर गली,हर नुक्क्ड़,बाजार और उस जगह तक जहां पर आम मतदाता रहता है।
इस जागों मतदाता के पेम्पलेट में आम निवासी व वोटर्स के उन्ही आम समस्याओं का जिक्र है,जिन समस्याओं को लेकर शहर के वांशिदें पिछले बीस-तीस सालों से व्यथित है। अपनी छोटी-छौटी समस्याओं के कारण से वे पालिका में चक्कर लगा कर थक चुके है,हताश हो चके हे,अपनी आम जायज मांगों की मनुवार कर ,जिनको उनके ही चुने हुए जन प्रतिनिधियों ने न तो सुना,और न ही उनके समाधान के लिए कोई सार्थक प्रयास किए।
अब चूंकि पुन: नगर पालिका के चुनाव चरम् पर है। और प्रत्याशियों को जोश भी नगर सेवक बनने को आतुर तो इन युवाओं ने संजय अग्रवाल,तुषार बोहरा,जितेन्द्र परिहार व कुक्कु भाई के नेतृत्व में पेम्पलेट का बंच लेकर हर मतदाता देकर उससे अपील कर रहे है कि वह इस बार वोट देवें तो कम से कम अपने शहर में ही अपने आवास को नहीं बना पाने की पीड़ा व उसके लिए किए जाने वाली सारी कवायदों के बाद भी क्यों अपने मूलभूत अधिकारों से आखिर आज तक वंचित है?
आखिर ऐसी कौन सा अपराध वह कर लेता है,अपना आवास बनाकर के ? कि,जब भी चाहे पालिका का बुल्डोजर उसके आवास को देखते ही देखते रौंध कर चल देता है ?
आखिर तीस सालों से क्यों नही बन पाया सालगांव बांध,क्या आज और आज के बाद भी हमारी आने वाली पीढ़िèèयां अग्रेजों के बनाए हुए जल व्यवस्था पर निर्भर रहेगी ?
चाहे जो भी कानूनी मजबूरियां रही हो,लेकिन आदमी की उम्र व उसके रोजी रोजगार के कार्यकलाप बीस पच्चीस सालों तक इन्तजार नहीं कर सकते? अपने संवैधानिक मूलभूत अधिकारों की पूर्ति के लिए? ऐसे में कुछ गलत भी हुआ या अवैध आवास बन भी गए तो उसका समाधान केवल उन्हें धराशायी करना मात्र ही है। अथवा विकल्प कम्पाउडिंग से लकर अन्य कानूनी पहलुओं तक तलाशें व उन्हें अमल में भी लाएं जा सकते है?
माउण्ट आबू एक खूबसूरत पर्वतीय पर्यटन स्थल है,आखिर अब उसके सौन्दर्य को ही ग्रहण क्यों लग रहा है?
क्यों हमें अपने राशन कार्उ समते लाइट पानी के एन ओ सी के लिए आज भी पालिका के चक्कर लगाने व बाद में कुद ले देकर ही अपने कार्य को कराने की विवशता हमारे सम्मुख रहती है?
लगभग इन्ही समस्याओं को लेकर के यह युवा सभी मतआताओं को जाग्रत कर रहे है कि इस बार अपना वोट सोच….कर,समझ…..कर व योग्य उम्मीद्वार को दे।
News Courtesy: Kishan Vaswani
Title: Jaago Abu, Mount Abu