देश के 15 महामण्लेश्वरों, आचार्यो, मंठो के मंहतो और साधु सन्तो सहीत हजारों श्रद्वालुओ ने स्वामी गिरी को दी श्रद्वाजंलि। विश्व में आध्यात्मिक वेदान्त के प्रकाश को बिखरने में अग्रदूत थे स्वामी ईश्वरानंद – आचार्य महामण्लेश्वर विशोकानंद भारती।
माउन्ट आबू – निर्वाण पीठाधीश्वर काशी धनीनाथ मठ के विश्व गुरू आचार्य महामण्लेश्वर स्वामी विशोकानंद भारती ने कहा है कि भारत की भूमि मानवी विशेषताओं की रत्न गरभा रही है। अनंत आकाश में नृत्य रथ असख्ंया आकाश्ज्ञ गंगाओ से लेकर अणु – परमाणु तक सूत्रित हुई एक शक्ति कार्यरत है। उस शक्ति से वेधारित है चलित है नियमबद्व होकर गतिशील है। कुछ दिव्य आभा से आलौकित महापुरूषों में यहां जन्म लेकर सभी के जीवन को एक नवीन आभामण्डल प्रदान किया। विश्य में आध्यात्मिक वेदान्त के प्रकाश को बिखरने में स्वामी ईश्वररनंदगिरी अग्रदूत थे। उन्होने देश व विश्व को सत्यपथ दिखाया सबके उदेर गुणों का सोन्दर्य पवित्रता की सुगन्ध को बिखेरा। उनका जीवन चरित्र आज सबके लिये प्रेरणा स्त्रोत बन गया है।
महामण्लेश्वर आचार्य विशोकानंद भारती आज माउनट आबू में सोमनाथ संत सरोवर में देश के 15 महामण्डलेश्वरों महंतो और साधु सन्तो और श्रद्वालुओ के बीच परिवा्रजकाचार्य परमंहस स्वामी ईश्वरानंदगिरी के ब्रहमलीन होने के पश्चात आयोजित षोडसी एवं श्रद्वातंलि कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होने कहा स्वमी ईश्वरानंदगिरी एक महापुरूष वेदान्त ज्ञाता थे अनैको के द्वारा इतना कुछ कहा गया और लिखा गया है कि उनको पिरोकर एक लम्बी पुस्तक माला बनाई जा सकती है।
हमारे पास स्वमी गिरी के साथ के लेखो के खजाने भ्ज्ञरे पडे है। सूरतगरी बंगला हरिद्वार के महामण्डलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरीजी महाराज ने कहा स्वामी ईश्वरानंद ने आध्यात्मिक, वेदान्त, सोम्यता का प्रकमपन पूरे विश्व में फेलाकर सबके लिये एक मिसाल बन गए । वे चुम्बकीय व्यक्तित्व के धनि थे आज उनके गुण और शिक्षाएं उनके रचे गीत लेख हमारे साथ जीवन्त रूप में है। परमार्थ साधक संध वाराणसी के महामण्डलेश्वर स्वामी प्रवण चैतन्यपुरी महाराज ने इस अवसर पर कहा स्वामी गिरी विश्व् गुरू थे। समस्त मानव जाति उन्हे अपना प्रेरणा स्त्रोत मानती है उनमें गुणो के सौन्दर्य और उसकी खुशबू फेलाना वेदान्त ज्ञान जन जन तक पहुचाना आदतो में शुमार था। उनका वेदान्त ज्ञान पुरे विश्व में प्रकाशमय हुआ। विश्व के प्रति जो भाव था धार्मिक समरसता प्रेम जैसे मूल्यो की स्थापना की और संवित साधनायान के प्रेणयता बने। सोमनाथ महादेव संत सरोवर के मंहत संवित साधनायान के अध्यक्ष स्वामी सोमगिरी ने स्वामी गिरी के उदगारों का वर्णन करते हुए कहा िकवे कहते थे दृश्यमान विश्वाकाश का जितना विस्तार है उतना हृदयकाश में भी है।
अन्तराकाश में वे सब कुछ है जो वहीराकाश में विद्यमान है। अग्नि वायु सूर्य चन्द्र आदि इस तथ्य का साक्षात्कार केवल योगसिद्व पुरूष कर पाते है। स्वामी सोमगिरी ने उनकी पुस्तक प्रणवमय ह्रदय में गाया, पुस्तक पर कहा था कि संवेदनशील साधक भी कविता की अनिवर्चनीय शक्ति से आंतरिक समृद्वि की एक झलक पाही सकता है। स्वामी ईश्वरानदंगिरी केे कविता संग्रहो लेखो में एक सूक्ष्य विश्व की याप्ति को देख सकते है। स्वामी गिरी के गीत आज भ्ज्ञी गूंजते है । उनकी क्रान्त दृष्टिहमारे चिरपरिचित विषयो में नूतन आयाम खोलती है। उन्होने कहा विज्ञान एक धर्म एक व्यापक तत्व है जो सभी लोको को धारण करता है।
धर्म को समझे बिना इसे अपनाना असंभव है और इसके बिना जीवन का सर्वागिण विकास और परमश्रेय की प्राप्ति भी संभव नहीं है। दक्षिण मठ से आए स्वामी सिद्वोजात महाराज ने कहा ईश्पर पर विचार किये बिना धर्म की हमारी समझ अधूरी रह जाती है। धर्म परमेश्वर का अनुलघ्न न्यायपूर्ण शासन है। परमेश्वर का कलापूर्ण करूझामय विधान है।
इस अवसर पर शान्मि मन्दिर हरिद्वार के महामण्डलेश्वर स्वामी नित्यानंद सरस्वतीजी महाराज, राय बरेली उत्तर प्रदेश के महामण्डलेश्वर स्वामी देवेन्द्रानंद गिरीजी महाराज, शंकरमठ भीलवाडा के महामण्डलेश्वर स्वामी जगदीशपुरीजी, साधाना सदन हरिद्वार के महामण्डलेश्वर स्वामी विश्वात्मानंद पुरीजी महाराज, मार्कण्डेय सन्यास आश्रम ओमकामेश्वर के महामण्डलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वतीजी, राजकोट गुजरात के परमांनद सरस्वतीजी, तत्वतीर्थ अहमदाबाद के स्वामी विदितात्मानंद सरस्वती, शिवानंद आश्रम अहमदाबाद के स्वामी अध्यात्मानंद सरस्वती, केथल हरियाणा के महामण्डलेश्वर स्वामी विरागानदंगिरीजी, स्वामी रास्वरूपपुरीजी, स्वामी मृडानंड गिरीजी शंकरमठ, स्वामी गणेशगिरीजी गुरूशिखर आबू पर्वत ने भी अपने विचार व्यक्त किये। महामण्डलेश्वरों के पहुचने पर यहां उनका भव्य स्वागत किया गया। महामण्डलेश्वरो ने स्वामी ईश्वरानंदगिरी को पुष्प अर्पित कर श्रद्वांजलि अर्पित की। उसके को षोडसी भडारे में भारी संख्या में लोगो ने प्रसाद लिया।