यूं तो वन विभाग की लापरवाही से माउंटआबू के जंगलों में आग हर साल लगती है लेकिन इस बार आग का तांडव इतना भयानक और व्यापक है कि देश के मीडिया में हर खबर एक बड़ी खबर बन गई है. यह आग 25 किलोमीटर के दायरे में 16 जगहों पर लगी है. दरअसल यह आग क्यों लगी एक बड़ा सवाल है लेकिन इसकी तह में आप जाए तो कारण भी साफ है जिसका कोई रॉकेट साइंस नहीं है.
फायर लाइन एक ऐसी तकनीक है जिसके बनाने से भयंकर आग पर भी काबू पाया जा सकता है। इस तकनीक में जिधर आग बढ़ रही होती है उसके पहुचने से पहले ही आग स्वंय आग लगाई जाती है जिसे साथ के साथ बुझाया जाता है । जैसे ही नजदीक आग पहुंचती है वहां पर ज्वलंत पदार्थ नहीं मिलने के कारण आग आगे नहीं बढ़ पाती और बाकी का जंगल आग की चपेट में आने से बच जाता है।
सबसे पहले कारण पर चर्चा करें तो फरवरी के महीने में बसंत पंचमी के समय से पेड़ों के पत्ते सूख-सूख कर नीचे गिरने लगते है। इस दौरान जमीन पर की हरियाली सूखकर घास में तब्दील होती है। नतीजा यह होता है कि सूखे पत्ते और सूखी हरियाली का ढेर जमा हो जाता है। गर्मियों के मौसम में जंगलों में आग नही लगे इसके लिए वन विभाग की अगुवाई में कई ठोस पहल की जाती है जिसमें इन पत्तों और सूखी हरियाली को जमा कर उसमें आग लगाई जाती है और उसके बाद जब इनके बुझने के बाद थोड़ी लौ बच जाती है तो उसमें उसे पानी डालकर बुझा दिया जाता है।
इस प्रक्रिया को देश की हर जंगल में अपनाया जाता है और माउंटआबू का वनक्षेत्र इससे अलग नही है। लेकिन इस बार वन विभाग की लापरवाही से ठेका प्रणाली में काफी गड़बड़ी हुई और वन विभाग ने यह ठेका किसी को दिया ही नही नतीजा सबके सामने है। दरअसल यह प्रक्रिया सूखे पत्तों को आग लगाने और बुझाने की है ताकि हवा से आग जंगलों में नही फैले। हुआ यह कि आग लगाने की प्रक्रिया तो पत्तों और सूखी हरियाली में हुई लेकिन पानी से आग बुझाना भूल गए लिहाजा गर्मी के बीच जब हवा चली तो आग जंगलों में जा फैली और उसने तांडल मचाना शूरू कर दिया। इस दौरान जो पत्तियों में आग लगाई गई थी वो हवा के झोकों से जंगलों में जा पहुंचे और फिर उनमें आग लग गई।
आग नहीं लगे इसके लिए वन विभाग फायर लाइन बनाता है। विभाग की ओर प्रत्येक साल इस तरह के फायर लाइन तैयार किया जाता है। जिससे कि किसी के द्वारा आग भी लगाया जाता है तो कर्मियों के सहयोग से जंगल व जानवरों का आग से बचाया जा सके । इस बार वन विभाग ने फायर लाइन बनाया ही नहीं। इस तकनीक से आग बीच में ही बुझ जाती है और आगे नहीं पहुंच पाती। इसके लिए पत्तों की सफाई करना और उसके क्रम को तोड़ना होता है ताकि आग को सूखी पत्तियों का साथ नहीं मिले और वो जंगल में आगे बढ़ने से रुक जाती है। इस बार वन विभाग ने लापरवाही की और फायर लाइन को बनाया ही नहीं।
आग लगने से जंगलों को बचाने के लिए करोड़ों रुपये का चेक डैम का बजट होता है। चेक डैम में पानी होता है जिससे जंगलों में लगी आग बुझाई जा सकती है। दरअसल इसका निर्माण दो मकसद से किया जाता है पहला कि जानवर और पशु पक्षियों को पानी पीने की दिक्कत नहीं हो और आग लगते ही पानी के संपर्क में आने से वह आगे बढ़ने से रुक जाता है। यह जंगलों में कई जगहों पर इसका निर्माण किया जाता है। जैसे ही आग फैलती है और जब वह चेक डैम तक पहुंचती है तो पानी में संपर्क में आने से आग बुझ जाती है और वह आगे नही बढ़ पाती है। इस प्रकार जंगल की तबाही होने से रूक जाती है।
माउंटआबू में आग के फैसले की वजह लालटेनियां झाड़ी का होना भी माना जा रहा है। दरअसल लालटेनिया झाड़ी काफी ज्वलनशील होती है और जैसे ही आग के संपर्क में आती है यह तेजी से फैलने लगती है। लालटेनियां झाड़ी को हटाए जाने और उसके उन्मूलन को लेकर कई बार बैठकें हुई लेकिन ठोस पहल नहीं होने की वजह से उसे नहीं हटाया जा सका। यहां के जंगलों में इसकी बहुतायत है। लिहाजा आग के फैलने और भयावह रूप लेने का यह भी एक बड़ा कारण बना।